ऐसे हुआ दशलक्षण का प्रारम्भ
आदिकाल से पृथ्वी या यूं कहें कि समूचे ब्रह्मांड में धीरे-धीरे परिवर्तन होता रहता है और एक समय आता है कि पृथ्वी पूरी तरह नष्ट हो जाती है और वापस धीरे धीरे बनने लगती है। यह सब धर्म के अनुसार अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल के परिवर्तन के कारण होता है। सुख, आयु आदि जिसमें कम होता है, उसे अवसर्पिणी काल और जिसमें यह बढ़ता है, उसे उत्सर्पिणी काल कहते हैं। इन दोनों के बीच के संक्रमण काल में 96 दिन होते हैं। यह सृष्टि के नाश और रचना का मुख्य काल होता है।
विचार मंथन : कर्त्तापन के भाव से परे होता है गुणातीत पुरुष- श्रीमद्भगवद्गीता
सात प्रकार की वर्षा
सात-सात दिन तक सात प्रकार की वर्षा होती है, जिनमें जहर, ठंडे पानी, धूम, धूल, पत्थर, अग्नि आदि की वर्षा शामिल हैं, इनसे पूरी पृथ्वी नष्ट हो जाती है। उसके बाद रचना को फिर से बनाने के लिए सात-सात दिन तक शीतल जल, अमृत, घी, दिव्य रस, दूध आदि की वर्षा होती है। इससे पृथ्वी हरी-भरी हो जाती है और चहुं ओर खुशी की लहर दौड़ पड़ती है।
दस धर्म के नाम
1- उत्तम क्षमा- क्षमा से व्यक्ति को इस लोक के साथ अगले लोक में सुख मिलता है। जीवन के हर कार्य के साथ क्षमा होना आवश्यक है, तभी वह अपने आप को संकट से बचा सकता है।
2- उत्तम मार्दव- सर्वगुण सम्पन्न होने पर जब दूसरों के प्रति उपकार का भाव आता है, वही वास्तव में मार्दवता है। मार्दव धर्म मान-कषाय के अभाव में आता है।
3- उत्तम आर्जव- जब मनुष्य का मन, वचन और काय किसी एक कार्य में एक साथ लग जाएं तो समझ लेना चाहिए कि उसके जीवन में आर्जव धर्म का प्रवेश हो गया है।
4- उत्तम शौच- स्वच्छता को ही जीवन में उतारने का भाव दर्शाता है यानी उत्तम शौच धर्म। जीवन में फैली मलीनता को दूर करना ही उत्तम शौच धर्म का पालन करना है।
5- उत्तम सत्य-उत्तम सत्य धर्म को बीज धर्म के समान माना गया है। मानव जीवन में क्रोध, मान, माया, लोभ, कषाय, मद और मोह जमीन के समान है और सत्य बीज है।
6- उत्तम संयम- स्वयं पर पूरी तरह नियंत्रण करना भी संयम माना गया है। प्राणियों की हिंसा न हो जाए और इन्द्रियों का दुरुपयोग न हो जाए, इस बात का ध्यान रखना भी संयम है।
7- उत्तम तप- तप को अध्यात्म का मूल माना गया है। तप शरीर को कष्ट देकर किया जाता है। जैसे सोने को तपाकर आभूषण बनाए जाते हैं, उसी तरह शरीर को तपाकर ही आत्मा को परमात्मा बना जा सकता है।
8- उत्तम त्याग- यह व्यक्ति पूर्ण त्याग या मर्यादित रहने का उपदेश देता है। सही मायने में त्याग के बिना कोई भी धर्म जीवित नहीं रह सकता। धर्म तथा आत्मा को जीवित रखने के लिए त्याग नितांत जरूरी है।
9- उत्तम आकिंचन्य- आकिंचन्य धर्म आत्मा की उस दशा का नाम है, जहां पर बाहरी सब छूट जाता है किंतु आंतरिक संकल्प विकल्पों की परिणति को भी विश्राम मिल जाता है।
10- उत्तम ब्रह्मचर्य- गुरु की आज्ञा में रहना और उनके मार्गदर्शन पर चलना, सादगी पूर्ण जीवन जीना, राग भाव का न होना और इन्द्रियों से नाता तोड़कर अपने आप को ध्यान के लिए तैयार कर लेना वास्तव में ब्रह्मचर्य धर्म है।
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