हिन्दुस्तान में ऐसे व्यक्तियों की कमी नहीं है जो अपने आरम्भिक जीवन में अत्यन्त निर्धन और अभाव ग्रस्त रहे पर आगे चलकर परिश्रम, पुरुषार्थ व लगन के बल पर समृद्ध बने। शापुर जी बारोचा का नाम इनमें उल्लेखनीय हैं। बारोचा जब छः वर्ष के थे तभी उनके पिता का निधन हो गया। पिता की मृत्यु के चार दिन बाद ही बड़े भाई का भी देहान्त हो गया मां ने अपने पहले, पति का समान आदि बेचकर किसी तरह बच्चों का पालन पोषण किया। शापुराजी पढ़ने के साथ-साथ खाली समय में मेहनत मजदूरी करते मां के ऊपर आये आर्थिक दबाव को कम करने का प्रयास करते थे।
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मैट्रिक पास करके उन्होंने रेलवे में नौकरी की, बाद में बैंक में नौकरी मिल गयी। थोड़े समय बाद वे नौकरी छोड़कर स्वतन्त्र व्यवसाय के क्षेत्र में उतर गये। अपनी सूझ बूझ ईमानदारी एवं परिश्रम शीलता के कारण वे निरन्तर उन्नति करते गये। सम्पत्ति तो एकत्रित की पर लोकोपयोगी कार्यों में बिना किसी नाम अथवा यश के उद्देश्य से खर्च किया। उनके एक मित्र तथा प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी पं. गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपने एक संस्मरण में लिखा है कि बरोचा जी मात्र एक सफल व्यवसायी ही नहीं थे वरन् एक उदार व्यक्ति भी थे। उन्होंने लगभग साठ लाख रुपया जनहित कार्यों में खर्च किया।
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