धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ग्रहण और सूतक के दौरान भोजन नहीं करना चाहिए। इसके दुष्प्रभाव पड़ते हैं। बता दें कि चंद्र ग्रहण से नौ घंटे पहले से लेकर ग्रहण समाप्त होने तक सूतक काल लगा रहता है यह अवधि भोजन के लिए ठीक नहीं होती। हालांकि बालकों, रोगियों और वृद्धों के लिए भोजन मात्र एक प्रहर यानी तीन घंटे के लिए वर्जित माना गया है।
गर्भवती महिलाएं ये सावधानी रखें धार्मिक ग्रंथों के अनुसार गर्भवती स्त्रियों को ग्रहण काल में घर से बाहर चंद्रमा की रोशनी में नहीं निकलना चाहिए। मान्यता है कि इस समय आपके घर से बाहर निकलने से राहु और केतु के दुष्प्रभाव के कारण शिशु शारीरिक रूप से अक्षम हो सकता है। ऐसा करने से गर्भपात की आशंका भी बढ़ जाती है। ग्रहण काल में गर्भवती स्त्रियों को वस्त्र आदि काटने या सिलने से बचना चाहिए। इस समय चाकू से काटने आदि का काम भी नहीं करना चाहिए। माना जाता है कि इन कार्यों का गर्भस्थ शिशु पर दुष्प्रभाव पड़ता है।
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ये काम भी न करें धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ग्रहण काल के दौरान तेल मालिश, जल ग्रहण, मल-मूत्र विसर्जन, बालों में कंघा, मंजन-दातुन से बचना चाहिए। इस समय यौन गतिविधियों से भी दूर रहना चाहिए।
ये काम भी न करें धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ग्रहण काल के दौरान तेल मालिश, जल ग्रहण, मल-मूत्र विसर्जन, बालों में कंघा, मंजन-दातुन से बचना चाहिए। इस समय यौन गतिविधियों से भी दूर रहना चाहिए।
ग्रहण के बाद यह करें धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ग्रहण के बाद पूर्व में बचे हुए भोजन को फेंक देना चाहिए और पूरे घर को गंगा जल से स्वच्छ कर स्वच्छ और ताजा बने हुए भोजन का सेवन करना चाहिए। वहीं ऐसी खाद्य सामग्री जैसे गेहूं, चावल, अन्य अनाज तथा अचार इत्यादि हैं, उनमें ग्रहण काल से पहले ही कुश घास और तुलसी दल डालकर ग्रहण के दुष्प्रभाव से संरक्षित कर लेना चाहिए। ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान आदि करके ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देनी चाहिए। ग्रहण के बाद दान करना अत्यन्त शुभ और लाभदायक माना जाता है।
ग्रहण के दौरान जागरण कर मंत्र जाप करें तमोमय महाभीम सोमसूर्यविमर्दन। हेमताराप्रदानेन मम शान्तिप्रदो भव॥1॥ विधुन्तुद नमस्तुभ्यं सिंहिकानन्दनाच्युत। दानेनानेन नागस्य रक्ष मां वेधजाद्भयात्॥2॥