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यादों के झरोखे से…स्टार प्रचारक कार्यकर्ताओं के घर खाते खाना, दरी भी उठा लेते थे उम्मीदवार

MP Election 2023 : एक समय था, जब चुनाव में आपसी सदभाव था, आमजन से ही जनसम्पर्क के दौरान खर्च के लिए राशि ली जाती। जब बड़ी सभाओं में बड़े नेता आते तो कार्यकर्ताओं में बांट लेते थे…

रतलामOct 16, 2023 / 09:37 am

Sanjana Kumar

रतलाम में वर्ष 1977 में प्रचार का एक दृश्य

mp election 2023 : एक समय था, जब चुनाव में आपसी सदभाव था, आमजन से ही जनसम्पर्क के दौरान खर्च के लिए राशि ली जाती। जब बड़ी सभाओं में बड़े नेता आते तो कार्यकर्ताओं में बांट लेते थे कि खाने की व्यवस्था किस-किस के घर में रहेगी। पार्टी में दरी उठाने से लेकर अन्य बाते अभी जुमला लगती है लेकिन तब यही हकीकत थी।कार्यकर्ताओं के मेहनत से ही चुनाव लड़ा जाता था। पूर्व गृहमंत्री हिम्मत कोठारी व कांग्रेस नेता खुर्शीद अनवर ने पत्रिका के साथ चुनाव के रोचक किस्से साझा किए।

पहले चुनाव में 13 हजार खर्च

बकौल हिम्मत कोठारी पहला चुनाव 13 हजार रुपए खर्च करके लड़ा था। आखिरी चुनाव 2008 में था, जिसमें चार लाख रुपए खर्च किए गए। कांग्रेस पार्टी पुरानी थी जबकि मैं जनसंघ से जुड़ा था। उस समय पैसा नहीं होता था। बड़े-बड़े नेता आते थे तो कार्यकर्ता के घर पर रुकते। सामूहिक रूप से कार्यकर्ता अपने-अपने घरों से खाना लाते और फिर सब नेताओं के साथ बैठकर खाते थे। लोग भी चुनाव में अपने स्तर पर छोटी-मोटी मदद करते थे। वर्ष 1980 में मैं स्वयं चुनाव प्रचार के दौरान खुर्शीद अनवर के पिता फजल हक से आशीर्वाद लेने उनके घर गया।

 

10 रुपए रोज में की थी बैंड की गाड़़ी

कोठारी बताते हैं कि चुनाव प्रचार के लिए आज जैसे साधन नहीं थे। इसलिए प्रचार के लिए कार्यकर्ताओं की मदद से बैंडबाजों की गाड़ी को दस रुपए रोज में किराए पर ली थी। इसमें लगे माइक से ही प्रचार करने जाते थे। चौराहों पर सभा करते थे। कई बार गाड़ी को उन्हें भी धकेलना पड़ा।

 

10 मिनट का समय दिया था अटलजी ने

1977 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी मंदसौर में सभा करने आए थे। रतलाम से ट्रेन पकड़नी थी। उनसे यहां सभा करने का निवेदन किया तो उन्होंने मना कर दिया लेकिन जब वे रतलाम पहुंचे तो ट्रेन लेट थी और वे पहले आ गए थे। ऐसे में दस मिनट का समय उन्होंने रतलाम को भी दिया था।

 

कार्यकर्ता खर्च करते, पहले चुनाव में 30 हजार खर्च

स्कूल और फिर कॉलेज की राजनीति से राजनीति की मुख्यधारा में आए खुर्शीद अनवर ने पहला चुनाव 1980 में तत्कालीन विधायक हिम्मत कोठारी के सामने लड़ा। बकौल खुर्शीद अनवर उस समय चुनाव प्रचार में झंडे-बैनर आदि का ज्यादा प्रचलन नहीं था। कार्यकर्ता पार्टी के प्रति इतने समर्पित थे कि वे अपने खर्चे खुद करते और पार्टी के लिए प्रचार करते। खुर्शीद अनवर बताते हैं कि जब उन्होंने पहला चुनाव लड़ा तो उस समय लोगों के पास इतना रुपया-पैसा भी नहीं था। पहले चुनाव में करीब 30 हजार रुपए खर्च हुए।

हर घर जाते थे कार्यकर्ता

अनवर बताते हैं कि पार्टी का कार्यकर्ता हर घर पर चुनाव को लेकर दस्तक देता था। लोग भी उनका उसी आत्मीयता से स्वागत करते थे। कहीं कोई द्वेष भावना नहीं थी। आज की तरह गुटबंदी या सांप्रदायिक जैसे शब्द ही नहीं थे। हर कार्यकर्ता अपनी पार्टी के लिए पूरे मन से काम करता और प्रत्याशी को जिताने का प्रयास करता।

आमसभा हुई तो वोरा आए थे प्रचार में

अनवर के अनुसार पहला चुनाव उन्होंने 1980 में लड़ा। उस समय प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा प्रचार के लिए आए थे। दो बत्ती पर उन्होंने पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. माधवराव सिंधिया के साथ सभा की थी। इस सभा में सज्जन मिल को दोबारा चालू करने की घोषणा भी की थी।

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