रामपुर. राजस्व विभाग की टीम ने बुधवार को सांसद आजम खान की ड्रीम प्रोजेक्ट मौलाना मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय में जाकर उनके कब्जे से 104 बीघा जमीन को अपने कब्जे में कर लिया है। कई घंटों की जांच पड़ताल के बाद राजस्व विभाग की टीम ने पहले नक्शे में जमीन को समझा और फिर इंच-इंच जमीन की नाप-तोल नक्शे के आधार पर जमीन पर की। जमीन को तस्दीक करने के लिए लकड़ी के टुकड़े भी लगाए हैं। साथ ही विभागीय कार्रवाई की वीडियोग्राफी कराकर एक रिपोर्ट भी तैयार की है, जो कोर्ट और शासन को भेजी जाएगी। 2 दिन पहले ही रेवेन्यू बोर्ड प्रयागराज हाईकोर्ट ने आजम खान के कब्जे से 104 बीघा दलितों की जमीन को सरकार के कब्जे में देने का आदेश दिया था, जिसको लेकर प्रशासन ने जाकर उस पर काम करना शुरू कर दिया। गौरतलब है कि इससे पहले आजम खान की ओर से रामपुर में बनाई गई उर्दू गेट को भी अवैध बताते हुए तोड़ दिया है।
यूपी में सत्ता परिवर्तन के बाद से ही भाजपा नेता आकाश हनी सक्सेना ने तत्कालीन कैबिनेट मिनिस्टर आजम खान पर कई संगीन आरोप लगाकर शिकायतें की थी। उन शिकायतों पर विभागीय जांच भी हुई। इसके बाद कई मामलों को लेकर वह प्रयागराज रेवेन्यू बोर्ड पहुंचे, जहां पर 2 साल इस पूरे मामले को चुना गया। रेवेन्यू बोर्ड में पूरे मामले को सुनने के बाद आजम खान के कब्जे से 104 बीघा जमीन रिलीज करने का फैसला सुना दिया। उसी फैसले को लेकर बुधवार को प्रशासन के अफसर मौलाना मोहम्मद अली जौहर कैंपस पहुंचकर 104 बीघा जमीन पर अपना कब्जा जमा लिया।
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यानी अब मौलाना मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय के अंदर अब 104 बीघा जमीन सरकार की है। इसकी रिपोर्ट भी प्रशासन सरकार को करने जा रहा है, लेकिन इस 104 बीघा के आसपास की जमीनों पर आजम खान का कब्जा है। यहां पर चारों तरफ से उनके गेट और दीवार अभी लगी है। प्रशासन का अपना रास्ता कौन सा होगा और कहां से प्रशासन रास्ता बनाएगा। दरअसल, मौलाना मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय के अंदर जो जमीन है, उन पर तमाम सारे भवन बने हुए हैं। तमाम सारे सड़क बनी हुई हैं, जिसकी रिपोर्ट भी प्रशासन तैयार कर रहा है।
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104 बीघा जमीन पर प्रशासन ने जो अपना कब्जा जमाया है। अब देखना होगा कि क्या आजम खान इस मुद्दे को लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत का दरवाजा खट खटाते हैं या फिर यूं ही चुप होकर बैठ जाएंगे। गौरतलब है कि आजम खान का कहना है कि मैंने जिस जमीन की रजिस्ट्री करवाई है। उसकी पाई-पाई का हिसाब उन जमीन मालिकों को दिया है, जिसका लेखा-जोखा भी कागजों में है। अब देखने वाली बात ये होगी कि आखम खान उन कागजों को लेकर क्या करेंगे।
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इस मामले में खास बात ये है कि तत्कालीन जिलाधिकारी ने अपनी कलम बचाने के लिए अनुमति-पत्र पर अपने सिग्नेचर नहीं किए थे। बावजूद इसके रजिस्ट्री ऑफिस में तैनात रजिस्टर ने एक दलित की जमीन को मौलाना मोहम्मद अली जोहर ट्रस्ट के संस्थापक मोहम्मद आजम खान के नाम कर दी, जबकि बिना डीएम के सिग्नेचर उनकी अनुमति के यह सब नहीं होना था। ऐसे में आजम खान पर यग इल्जाम लग रहा है कि सत्ता आजम खान की थी और उनका काफी था। ऐसे में अफसरों ने विशेष मेहरबानी दिखाई। अफसरों की इसी मेहरबानी का खामियाजा आजम खान को उठाना पड़ रहा है। इस मामले में देखने वाली बात ये होगी कि अब उन दोषी अफसरों पर क्या कार्रवाई की जाती है, जिन्होंने कायदे-कानून को ताक पर रखकर रजिस्टर में 104 बीघा दलितों की जमीन को मौलाना मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय ट्रस्ट के नाम रजिस्ट्री कर दी।