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जानिये, रामपुर के नवाब कल्बे अली खान की खड़ी कब्र की सच्चाई, इनकी अय्याशी के चर्चे भी हैं आम

Untold Story of Nawab Kalbe Ali Khan : रामपुर सियासत के नवाब कल्बे अली खान की कहानी ऐसी विचित्रताओं से भरी पड़ी है, जिसे जानकर हर कोई हैरान रह जाता है। यह अलग बात है कि नवाब के संबंध में गढ़ी गई कहानियों की सच्चाई बताने वाला कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है। कहा जाता है कि कल्बे अली खान को जब दफनाया गया था, तब उनकी लाश कब्र से बाहर आ गई थी।

रामपुरFeb 16, 2022 / 04:27 pm

lokesh verma

क्या है रामपुर के नवाब कल्बे अली खान की खड़ी कब्र की सच्चाई, इनकी अय्याशी के चर्चे भी हैं आम।

Untold Story of Nawab Kalbe Ali Khan : उत्तर प्रदेश का इतिहास नवाबों और उनकी कहानियों से भरा पड़ा है। नवाबों की तमाम खूबियां थीं तो उनकी खामियों की भी खूब चर्चा होती है। रामपुर सियासत के नवाब कल्बे अली खान की कहानी ऐसी विचित्रताओं से भरी पड़ी है, जिसे जानकर हर कोई हैरान रह जाता है। यह अलग बात है कि नवाब के संबंध में गढ़ी गई कहानियों में सच्चाई कितनी है, यह बताने वाला कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है। कहा जाता है कि कल्बे अली खान को जब दफनाया गया था, तब उनकी लाश कब्र से बाहर आ गई थी। इसके बाद उनके शव को खड़ी कब्र में दफन किया गया। कहते हैं देश के यह एकमात्र नवाब हैं, जिन्हें खड़ी कब्र में दफन किया गया है।
विलासी थे नवाब कल्बे अली खान

नवाब कल्बे अली खान के बारे में कहा जाता है कि वह बेहद ही विलासी शख्स थे। हमेशा वासना में लिप्त रहते थे। कहते तो यह भी हैं कि नई दुल्हनों को नवाब के पास लाया जाता था। जिन्हें वह पसंद कर लेता था, उसे राजमहल में रात बितानी पड़ती थी। लेकिन, इन तथ्यों में कितनी सच्चाई है, इसके बारे में इतिहास मौन है। हो सकता है यह मनगढ़त कहानियां हों, जिससे नवाब के चरित्र हनन की कोशिशें की गई हों। ये सभी बातें मीडियो रिपोर्ट्स पर आधारित हैं। हम इसकी पुष्टि नहीं करते हैं।
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अरबी-फारसी के थे अच्छे विद्धान

हालांकि नवाब कल्ब अली खान अरबी और फारसी के विद्वान भी थे। उनके शासनकाल में रामपुर रियासत में साहित्य को भरपूर प्रोत्साहन मिला। नवाब कल्बे अली खान का महत्वपूर्ण योगदान 13वीं शताब्दी के प्रसिद्ध फारसी कवि शेख सादी की पुस्तक ‘करीमा’ का देवनागरी ब्रज भाषा में कवि बलदेव दास चौबे शाहबाद रामपुर निवासी से आग्रह करके अनुवाद कराना था। यह अनुवाद दोहे और चौपाईयों के माध्यम से बहुत सुंदर रीति से सन् 1873 में बरेली रुहेलखंड लिटरेरी सोसायटी की प्रेस में छापा गया था।
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