वहीं सपा हारी तो भी आजम खान पर ही सवाल खड़े होंगे, क्योंकि उनके समर्थकों ने सपा प्रत्याशी का खुलकर विरोध किया था। बीते 20 साल से रामपुर लोकसभा सीट पर सपा मुख्य लड़ाई में रही। 2004 व 2009 में सपा से जयाप्रदा जीतीं।
मोदी लहर में 2014 में भाजपा से डॉ. नैपाल सिंह ने बाजी मारी, जबकि 2019 में पहली बार आजम खान सांसद चुने गए। आजम के इस्तीफा देने के बाद 2022 में हुए उपचुनाव में भाजपा के घनश्याम लोधी ने जीत दर्ज की। जेल में रहने के चलते आजम खान व उनके परिवार का सक्रिय राजनीति का हिस्सा न बनना रामपुर की राजनीति में नया अध्याय शुरू करने के संकेत दे रहा है।
2024 चुनाव रामपुर में सपा जीतती है तो मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर पर नए चेहरे के साथ नए राजनीतिक अध्याय का भी आगाज होगा, जो भविष्य में आजम खान की राजनीति के लिए खतरा बन सकता है।
यदि यह सीट सपा हार जाती है तो इसके पीछे वजह यह मानी जाएगी कि आजम खान के समर्थकों ने सपा प्रत्याशी को इस बार चुनाव नहीं लड़ाया। सपा की मौजूदा कार्यकारणी से लेकर आजम खान के करीबी रह चुके पदाधिकारी इस चुनावी प्रक्रिया से बाहर रहे। ऐसी परिस्थितियों में सपा नेता आजम खान का वर्चस्व खतरे में पड़ता हुआ दिखाई पड़ रहा है। राजनीतिक विशेषज्ञ मान रहे हैं कि रामपुर में जीत हो या हार नुकसान आजम खान को होने वाला है।
सपा के मोहिब्बुल्लाह का भाजपा से मुकाबला
आजम खान के खिलाफ तमाम मुकदमे विचाराधीन हैं। बेटे अब्दु्ल्ला आजम खान के दो जन्म प्रमाणपत्र समेत कई मामलों में सजा हो चुकी है। फिलहाल वह सीतापुर जेल में बंद हैं। उनको कानूनी तौर पर राहत मिलती हुई नजर नहीं आ रही है।
सपा ने लोकसभा चुनाव में दिल्ली पर्लियामेंट मस्जिद के इमाम मौलाना मोहिब्बुल्लाह नदवी को रामपुर लोकसभा सीट से अपना प्रत्याशी बनाया था। चुनाव में सपा और भाजपा प्रत्याशी घनश्याम लोधी के बीच कड़ा मुकाबला नजर आ रहा है। चुनाव के नतीजे क्या होंगे, यह तो 4 जून को ही साफ होगा। साथ ही आजम खान के सियासी रसूख का भी फैसला होगा।