शोभायात्रा में शामिल दो घोड़ों के मुंह में कसी लगाम के कारण जबड़े छिल जाने से रक्त बह रहा था। शोभायात्रा की चमक-दमक में किसी को भी इनकी पीड़ा नहीं दिखाई दी। इन दो घोड़ों को कुछ लोग द्रवित भी हुए, लेकिन ढोल-ढमाके और शोर-शराबे के बीच किसी ने ध्यान नहीं दिया।
यहां तक कि घोड़ा मालिक भी घोड़ों को नचाए जा रहे थे। घोड़ों को केवल ढोल-नंगाड़ों व गीतों पर नचाया जाता रहा और पूरी सवारी के दौरान दो अश्वों के मुंह छिलने से घाव से खून बहता रहा। अश्वपालक ने भी घोड़े की इस पीड़ा को नजर अंदाज किया और अश्व करतब दिखाने के लिए मजबूर किए जाते रहे।