राजनंदगांव

स्वतंत्रता दिवस: 20 की उम्र में गांधी जी ने दी थी जिम्मेदारी, अंग्रेज डिगा नहीं पाए, आजादी की पहली सूरज देखने वाले सेनानी गिरधारीदास

महज 19 की उम्र में 20 गांवों में आजादी की अलख जगाने की जिम्मेदारी। आंदोलन के प्रणेता बापू ने खुद उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी। इसलिए जूनून भी ऐसा कि अंग्रेजों का दमन कमजोर पड़ गया।

राजनंदगांवAug 15, 2018 / 11:37 am

Dakshi Sahu

स्वतंत्रता दिवस: 20 की उम्र में गांधी जी ने दी थी जिम्मेदारी, अंग्रेज डिगा नहीं पाए, आजादी की पहली सूरज देखने वाले सेनानी गिरधारीदास

राजनांदगांव/दुर्ग. महज 19 की उम्र में 20 गांवों में आजादी की अलख जगाने की जिम्मेदारी। आंदोलन के प्रणेता बापू ने खुद उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी। इसलिए जूनून भी ऐसा कि अंग्रेजों का दमन कमजोर पड़ गया। अंग्रेजों ने 6 माह तक जेल की काल कोठरी में बंद रखा, लेकिन हौसला नहीं डिगा। आजादी की पहली सूरज तक अंग्रेजों के खिलाफ वैचारिक क्रांति की मसाल जलाए रखा।
आज भी अडिग हैं गांधी जी के आदर्शों पर
यह कहानी है जिले के एकमात्र जीवित स्वतंत्रता सेनानी गिरधारीदास मानिकपुरी के हौसले व महात्मा गांधी के प्रति समर्पण का। आजादी के 71 बरस देख चुके मानिकपुरी अब 94 साल के हो चुके हैं। शारीरिक शिथिलता के अलावा अब स्मृति भी साथ छोडऩे लगी है, लेकिन गांधीजी के आदर्शों पर वे आज भी अडिग हैं। विस्मृति के बाद भी वे न सिर्फ गांधीजी की नैतिकता के सिद्धांतों की चर्चा करते हैं। आज भी केवल खादी के कपड़े पहनते हैं।
बताई स्मृतियां
पत्रिका ने आजादी के इस महानायक के जिला मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर दूर दुर्ग-बालोद मार्ग पर उनके गृहग्राम कुथरेल में मौजूदा हालात जानने का प्रयास किया। चार बेटों का भरापूरा परिवार के साथ रह रहे मानिकपुरी भरी दोपहरी में घर के भीतर कमरे में सफेद खादी के कपड़े पहने विचार मुद्रा में बैठे मिले।
बेटे तुलसीदास मानिकपुरी ने उनकी स्मृति के संबंध में बताया, फिर भी हमने परिचय देकर आंदोलन के दौर की बातें बताने के लिए कहा। सवाल के साथ वे सोच में डूब गए और जैसे स्मृति लौट आई हो। आंदोलन से जुड़ी बातें बताई। उन्होंने कई टुकड़ों में दुर्ग पहुंचे गांधीजी से मुलाकात, गांव-गांव वैचारिक क्रांति की जिम्मेदारी, पुलिस की कार्रवाई और जेल यात्रा की बातें बताई।
स्वाभिमान ऐसा कि पेंशन लेने से करते हैं परहेज
तुलसीदास ने बताया कि उनके पिता ने जीवनभर गांधीजी के सत्य, अहिंसा, सादगी और स्वाभिमान के सिद्धांतों का पालन किया। स्मृति में कमी के बाद भी वे अधिकतर नियमों का पालन करते हैं। यहां तक की बिना काम पैसे नहीं लेने के सिद्धांत का पालन करते हुए आज भी कई बार पेंशन लेने से मना करते हैं। इसी सिद्धांत के चलते उन्होंने दूसरी सरकारी सहायता भी नहीं ली।
रायपुर जेल में बंद रखा
मानिकपुरी ने बताया कि खुद गांधीजी ने आंदोलन से जुड़ी जानकारियां गांव-गांव पहुंचाने की जिम्मेदारी उन्हें दी थी। वे हाथ में डंडा लेकर गीत और भाषण के माध्यम से आस-पास के करीब 20 गांवों में यह संदेश पहुंचाते थे। 1942 में करो या मरो आंदोलन के ऐलान के बाद उन्हें आधा सैकड़ा से ज्यादा पुलिस वालों ने गांव में घेरकर तिलोचन साहू व 4 अन्य साथियों के गिरफ्तार कर लिया और 6 माह रायपुर सेंट्रल जेल में बंद रखा।
जारी रखा अभियान
मानिकपुरी के बेटे तुलसीदास ने बताया कि जेल से लौटने के बाद भी उनका गांव-गांव अलख जगाने का काम चलता रहा। आजादी के बाद सामाजिक उत्थान के लिए उनका अभियान चलता रहा। इसके बाद उन्हें शिक्षक की नौकरी मिल गई। शिक्षक रहते हुए मानिकपुरी ने करीब 30 साल सेवा दी। आज भी उनके कई शिष्य उनसे नियमित मिलने आते हैं।
तुलसीदास ने बताया उनके पिता आजादी के बाद सामाजिक उत्थान और राजनीतिक जागृति के लिए अभियान चलाते रहे। उनके दौर में राजनीति को सेवा का माध्यम माना जाता था, लेकिन वे मौजूदा दौर में राजनीति के बदलते हुए मायनों से काफी आहत हैं। स्मृति कम होने से पहले ही वे मौजूदा राजनीति से जुड़ी बातों से परहेज करने लगे थे।

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