जिला संगठन के साथ साथ ब्लॉक और ग्रामीण संगठन भी इस बार पूरी तरह फेल हो गया। संगठन में बदलाव और निष्क्रियता के मामले समय-समय पर लगातार उठते रहे हैं। लेकिन विधानसभा में छोटी जीत के बाद इस पर विराम लग गया था। अब लोकसभा में उमीद के उल्टे हार के बाद संगठन में बदलाव को लेकर विरोध मुखर हो रहा है।
यह भी पढ़ें
CM Sai Cabinet Expansion: साय कैबिनेट में किसे मिलेगा मौका, 2 मंत्री पद के लिए सामने आए ये पांच नाम
छुईखदान शहर और ग्रामीण इलाकाें में भी कांग्रेस को अपेक्षानुरूप लीड तो दूर विधानसभा की लीड भी बरकरार नहीं रह पाई। खैरागढ़ शहर में भी विधानसभा चुनाव की तरह ही बड़ी खाई के साथ हार मिली। शहर में कांग्रेस का प्रचार अभियान दिखा ही नहीं। वार्डों में जनसंपर्क करने से भी कांग्रेसी पीछे हटते रहे। जबकि खैरागढ़ ग्रामीण इलाके में भी कांग्रेस प्रत्याशी बघेल को उमीद के मुताबिक लीड नहीं मिली। जिसके चलते विधानसभा चुनाव में मिली 56 सौ की जीत लोकसभा में 59 सौ की हार में बदल गई।संगठन की कमजोरी
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस संगठन पूरी तरह फेल रहा। प्रत्याशी रहे भूपेश बघेल के जनसंपर्क के दौरान ही संगठन और कांग्रेस पदाधिकारियों की सक्रियता दिखी। लेकिन उनके जाने के बाद संगठन स्तर पर प्रचार अभियान तेजी नहीं पकड़ सका। जिलाध्यक्ष गजेन्द्र ठाकरे के गांव में ही भाजपा को एकतरफा लीड मिली। साल्हेवारा वनांचल में भी कांग्रेस लीड नहीं ले पाई। गंडई शहर में भी कांग्रेस की हार और बढ़ गई। संगठन में केवल पदाधिकारी बनकर बैठे लोगों ने भी कांग्रेस की लूटिया डूबोने में कोई कसर नहीं छोड़ी। विधायक रहते कांग्रेस के प्रचार प्रसार में तेजी और सक्रियता की उमीद थी वो भी धरी की धरी रह गई। प्रचार के दौरान भी कांग्रेस पदाधिकारियों की सक्रियता अपेक्षा से कम रही। बूथ अध्यक्ष, निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के भरोसे प्रचार-प्रसार अभियान की चुनौती सफल नहीं हो पाई। जिला, ब्लाक और शहर संगठन भी प्रचार अभियान में गति नहीं बढ़ा पाया, जिसके चलते लोगों तक कांग्रेस के मुददे नहीं पहुंच पाए। विधायक से भी संगठन और प्रत्याशी की उमीद मुताबिक प्रचार प्रसार के लिए मदद नहीं मिलने की शिकायत सामने आई है।