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Interesting: पार्टी कोई भी हो, 46 सालों से सिर्फ डॉक्टर ही जीत रहे चुनाव

sanchi assembly election 2023- बड़ा दिलचस्प होता है सांची विधानसभा का चुनाव…। इस बार क्या है स्थिति…।

रायसेनOct 17, 2023 / 10:52 am

Manish Gite

प्रवीण श्रीवास्तव

1977 के बाद से अब तक सांची विधानसभा में सिर्फ दो ही चेहरों ने प्रतिनिधित्व किया है। पहले तीन चुनाव को छोड़ दें तो 1977 से दो डॉक्टरों ने ऐसा कब्जा किया, जो आज तक बरकरार है। चुनाव तो अन्य गैर डॉक्टर नेताओं ने भी लड़ा, लेकिन संयोग यह कि जीत केवल डॉक्टर को ही मिली। यानि डॉक्टर होना यहां जीत की गारंटी बन गया। भाजपा या कांग्रेस ने जब भी अपना प्रत्याशी बदला, उसे हार ही मिली।

बात पहले चुनाव से शुरू करते हैं। प्रदेश के गठन के बाद 1957 में पहला चुनाव हुआ था, तब सांची दो विधायकों वाली विधानसभा थी, एक हिस्से से गुलाब चंद तामोट तो दूसरे हिस्से से राजा दौलत सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे। विधानसभा का एक हिस्सा रायसेन और गोहरगंज तहसील का था, तो दूसरा हिस्सा बाड़ी और बरेली तहसील हुआ करता था। 1962 के दूसरे चुनाव में भी सांची से कांग्रेस के गुलाबचंद तामोट चुनाव जीते थे। 1967 में खुमानसिंह ने चुनाव जीता। तो 1972 में कांग्रेस के दुलीचंद यहां से चुनाव जीतने वाले आखिरी ऐसे नेता थे जो डॉक्टर नहीं थे। इस तरह हुई डॉक्टर की एंट्री सांची विधानसभा के एससी वर्ग में आरक्षण के साथ सांची से कांग्रेस का एकाधिकार खत्म हुआ और डॉक्टर की एंट्री हुई।

 

1977 में जनता पार्टी के डॉ. गौरीशंकर शेजवार (dr gauri shankar shejwar) ने कांग्रेस के उमरावसिंह को बड़े अंतर से हराकर चुनाव जीता। उसके बाद 1980 के चुनाव में डॉ. शेजवार ने कांग्रेस के मुुन्नालाल को हराया। 1985 में एक और डॉक्टर मैदान में उतरे। इस बार कांग्रेस ने डॉ. प्रभुराम चौधरी (dr prabhuram choudhary) को मैदान में उतारा और उन्होंने डॉ. शेजवार को हराकर सीट पर पुन: कांग्रेस की वापसी कराई। 1990 में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदला और हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस ने गज्जूलाल को टिकट दिया, जिन्हे भाजपा के डॉ. शेजवार ने बड़े अंतर से हराया। दिलचस्प रही दो डॉक्टरों की भिडं़त सांची विधानसभा में 1985 से दोनों दलों से डॉक्टरों की भिडं़त शुरू हुई जो हमेशा दिलचस्प रही।


हालांकि कांग्रेस ने बीच में अपना प्रत्याशी बदला, लेकिन सफलता नहीं मिली। जब भी कांग्रेस जीती सफलता डॉक्टर को ही मिली। इस दौरान 1990 से 2003 तक लगातार चार चुनाव डॉ. शेजवार ने जीते। उसके बाद एक बार प्रभुराम और दो बार शेजवार विजयी रहे। 2018 में भाजपा ने अपना प्रत्याशी बदला। पार्टी ने डॉ. शेजवार के पुत्र मुदित शेजवार को टिकट दिया और वे चुनाव हार गए। डॉ. प्रभुराम ने फिर जीत हासिल की। 2020 के उपचुनाव में भी डॉ. प्रभुराम ही जीते, हालांकि इस बार वे भाजपा के टिकट से चुनाव लड़े थे।

 

 

ऐसे रहे अब तक के चुनाव परिणाम
वर्ष विजेता पराजित

1972 दुलीचंद (कांग्रेस) लखन लाल (जनसंघ)
1977 डॉ. गौरीशंकर शेजवार (जनता पार्टी) उमराव सिंह (कांग्रेस)
1980 डॉ. गौरीशंकर शेजवार (भाजपा) मुन्नालाल (कांग्रेस)
1985 डॉ. प्रभुराम चौधरी (कांग्रेस) डॉ. गौरीशंकर शेजवार (भाजपा)
1990 डॉ. गौरीशंकर शेजवार (भाजपा) गज्जूलाल (कांग्रेस)
1993 डॉ. गौरीशंकर शेजवार (भाजपा) डॉ. प्रभुराम चौधरी (कांग्रेस)
1998 डॉ. गौरीशंकर शेजवार (भाजपा) डॉ. प्रभुराम चौधरी (कांग्रेस)
2003 डॉ. गौरीशंकर शेजवार (भाजपा) सुभाष बाबू (कांग्रेस)
2008 डॉ. प्रभुराम चौधरी (कांग्रेस) डॉ. गौरीशंकर शेजवार (भाजपा)
2013 डॉ. गौरीशंकर शेजवार (भाजपा) डॉ. प्रभुराम चौधरी (कांग्रेस)
2018 डॉ. प्रभुराम चौधरी (कांग्रेस) मुदित शेजवार (भाजपा)
2020 डॉ. प्रभुराम चौधरी (भाजपा) मदनलाल अहिरवार (कांग्रेस)

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