स्वतंत्रता दिवस पर आप भी वहां जाइए और उनके योगदान को महसूस कर देशभक्ति का जज्बा जगाइए। इतना ही न हीं, ऐसे स्पॉट की मौके पर सेल्फी लीजिए और पत्रिका को वाट्सऐप कीजिए। चुनिंदा तस्वीरें 17 अगस्त के अंक में प्रकाशित की जाएंगी। वाट्सऐप नंबर है- 9806542400
आजाद चौक: आजादी की लड़ाई का गवाह देश को स्वतंत्रता दिलाने में बहुत से महापुरुषों का योगदान रहा है। इसमें बच्चों ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। जिस बच्चे का सबसे अहम योगदान रहा, उसे बलीराम दुबे आजाद के नाम से जाना जाता था। बलीराम रायपुर की वानर सेना के प्रभारी थे। उनका दल अंग्रेजों के खिलाफ पोस्टर लगाता था और क्रांतिकारियों की सूचनाओं को एक जगह से दूसरे जगह पहुंचाते थे। अंग्रेज वानर सेना के इस दल से इतना परेशान थे, कि बच्चों को हिरासत में लेकर शहर के बाहर जंगल में छोड़ने लगे थे।
इतिहासकार बताते है, बलीराम दुबे 14 साल में बेहद सक्रिय थे। क्रांतिकारी उन्हें साहब बलिराम आजाद के नाम से ही पुकारते थे। 1942 में जब भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था। उस दौरान बलीराम को पुलिस ने ब्राम्हणपारा चौक के पास पकड़ लिया। उनसे क्रांतिकारियों का पता पूछा गया। बलीराम की पुलिस ने जमकर पिटाई की। मार खाने के बाद उन्होंने क्रांतिकारियों का पता और नाम नहीं बताया। उसके बाद से ही उस चौक का नाम आजाद चौक रखा गया।
जयस्तंभ चौक पर दी गई थी वीर को फांसी 10 दिसंबर 1857 को अंग्रेजों ने रायपुर के जयस्तंभ चौक पर छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीरनारायण सिंह को फांसी दे दी थी। तब से लेकर आज तक 10 दिसंबर को पूरे छत्तीसगढ़ में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।
विजयंत टैंक: देश का पहला स्वदेशी जीई रोड स्थित अनुपम गार्डन के पास स्थापित विजयंत टैंक देश का पहला स्वदेशी टैंक है। सन 1965 से लेकर 2008 तक यह टैंक भारतीय फौज का हिस्सा रहा। सन 1971 की लड़ाई में इस टैंक का महत्वपूर्ण योगदान था। 39 हजार किलो वजनी यह टैंक 105 मिलीमीटर चौड़ा है, जिसमें 50 गोले रखे जा सकते हैं।
इस टैंक से अलग-अलग तरह व साइज के गोले 44 से दो हजार राउंड तक फायर किए जा सकते हैं। तीन मीटर गहरी और दो मीटर चौड़ी खाई को फांदने वाला यह टैंक 530 किमी तक का सफर तय कर सकता है।
जहां बलिदान हुए थे वहां प्रतिमा स्थापित जय स्तंभ चौक पर वीर शहीद नारायण की 15 फुट की प्रतिमा स्थापित की गई है। यह उसी जगह स्थापित की गई जहां वीर नारायण सिंह बलिदान हुए थे।
जैतू साव मठ में बनती थी रणनीति पुरानी बस्ती में स्थित जैतू साव मठ का आजादी की लड़ाई से गहरा रिश्ता रहा है। यहां आजादी के दीवाने जुटते थे, रणनीति बनाते थे। न केवल स्थानीय बल्कि देश भर के कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मठ में पहुंचे थे और रणनीति बनाई थी।
इतिहासविद डॉ. रमेंद्र नाथ मिश्र बताते हैं कि जैतूसाव मठ देशभर के कई राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम का ठिकाना था। जैतू साव मठ का इतिहास 250 साल पुराना है। इस मठ का ऐतिहासिक महत्व है।
शहीदों के सम्मान मेें अमर जवान ज्योति रावांभाठा इलाके के बंजारी मंदिर के मुख्य द्वार पर देश के वीरों को सम्मान देने के लिए कुछ साल पहले अमर जवान ज्योति प्रज्वलित की गई थी। मंदिर के समक्ष प्रज्वलित हो रही अमर जवान ज्योति बच्चों, युवाओं के मन में देशभक्ति की भावना जगा रही है। संभवत: यह पहला मंदिर है जहां तिरंगा लहराता रहता है।
गांधी उद्यान में बापू ध्यान मग्न गांधी उद्यान में बापू की प्रतिमा स्थापित की गई है। गांधी की ध्यान मग्न प्रतिमा के पास शांति का अहसास होता है। टाउन हॉल में स्वतंत्रता सेनानी करते थे मंथन
शहर के बीचों-बीच बनी हेरिटेज बिल्डिंग टाउन हॉल 134 साल पुराना है। स्वतंत्रता सेनानी यहां बैठक कर आजादी की रणनीति बनाया करते थे। 1887 से 1889 के बीच 24 हजार रुपए में ये भवन बनाया गया था। कुछ साल पहले इसे रिनोवेट किया गया है। सुरक्षा के लिहाज से बिल्डिंग के चारों ओर ग्रिल से घेराव किया गया है।