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यह ऑनलाइन सर्वे एमबीबीएस व पीजी छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर किया गया था। इसमें एमबीबीएस के 25590, पीजी के 5337 छात्रों व 7035 फैकल्टी ने हिस्सा लिया था। सर्वे का खुलासा चौंकाने वाला इसलिए भी है, क्योंकि एमबीबीएस व एमडी-एमएस में एडमिशन के लिए इतनी मारामारी है कि इस साल नीट यूजी में 24 लाख व पीजी में ढाई लाख से ज्यादा छात्र शामिल हुए। एडमिशन के बाद छात्र अगर पढ़ाई पूरी नहीं करना चाहते हैं तो इसमें माहौल का भी असर हो सकता है। दरअसल सर्वे में हॉस्टल व वॉर्डन को भी शामिल किया गया था। ज्यादातर छात्र न होस्टल के माहौल से खुश है और न कॉलेज के वार्डन के रवैये से। सर्वे में छत्तीसगढ़ के छात्रों ने भी भाग लिया था, लेकिन इसकी संया कितनी है, स्पष्ट नहीं है।
पहले के तीन साल मुश्किल के, इस दौरान खुदकुशी का ख्याल ज्यादा
सर्वे में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि एमबीबीएस के पहले तीन साल काफी मुश्किलों भरा होता है। इस दौरान छात्रों में खुदकुशी का याल ज्यादा आता है। 39 फीसदी छात्र हॉस्टल में रहने व पढ़ाई के दौरान अकेलापन महसूस करते है। यही कारण है कि उन्हें खुदकुशी का याल आता है। सर्वे के अनुसार देश के मेडिकल कॉलेजों में 65.5 फीसदी छात्र शहरी होते हैं। जबकि, महज 16 फीसदी छात्र ग्रामीण। 84.5 फीसदी छात्र अंग्रेजी माध्यम वाले होते हैं। 86 फीसदी छात्रों की परिवार की आय एक से 20 लाख रुपए सालाना होती है। वहीं साढ़े 16 फीसदी छात्र ज्वाइंट फैमिली से आते हैं। जबकि 84 फीसदी एकल परिवार से आते हैं।
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- सभी दिन काउंसलिंग शुरू की जाए।
- बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर होना चाहिए।
- वर्कलोड कम करना चाहिए।
- एंटी रैगिंग अभियान में सती हो
- इंजीनियरिंग की तरह मेडिकल कॉलेजों में कम से कम पांच दिनों का इंडक्शन प्रोग्राम हो।
- पढ़ाई को छात्रों के अनुरूप बनाएं।