तीनों प्रकरण खारिज
भारतीय पुलिस सेवा 1994 बैच के आईपीएस जीपी सिंह को पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान उनके खिलाफ एक्सटॉर्शन, आय से अधिक संपत्ति और राजद्रोह का मामला दर्ज करवाया गया था। इसके आधार पर उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने का प्रस्ताव राज्य सरकार ने भेजा था, जिसके आधार पर केंद्र सरकार द्वारा अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गई थी। इस पर उन्होंने अधिवक्ता हिमांशु पांडे के माध्यम से कैट में चुनौती दी। कैट ने जीपी सिंह को बहाल करने के आदेश दिए, जिसके आधार पर राज्य सरकार ने उन्हें बहाल करने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा था, पर केंद्र सरकार ने उन्हें बहाल करने की बजाय कैट के फैसले को हाईकोर्ट में अपील कर दिया।
हाईकोर्ट ने भी जीपी सिंह के पक्ष में फैसला दिया। इसे यूनियन ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट में दस दिसंबर को जस्टिस ऋषिकेश राय और जस्टिस एसबीएन भाटी की डिवीजन बेंच में मामले की सुनवाई हुई। जिसमें जीपी सिंह की तरफ से सीनियर एडवोकेट पीएस पटवालिया ने पैरवी की।
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वहीं छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के अधिवक्ता हिमांशु पांडे ने उन्हें असिस्ट किया किया और पूरे मामले की जानकारी दी। वहीं सुप्रीम कोर्ट में सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यूनियन का पक्ष रखा। यूनियन के तीनों आधारों को जीपी सिंह के अधिवक्ताओं ने काउंटर किया। यूनियन के तीनों आधारों में पहला आधार था कि जीपी सिंह के खिलाफ तीन अपराधिक प्रकरण दर्ज थे, जिसके बारे में जीपी सिंह के अधिवक्ता ने बताया कि उक्त तीनों आपराधिक प्रकरणों को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के डिवीजन बेंच ने क्वेश कर दिया है। बचाव पक्ष द्वारा कुछ अन्य दलीलें पेश की गई। इन सभी आधारों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने जीपी सिंह को जिस दिन से उनकी सर्विस ब्रेक हुई है, उस दिन से समस्त सेवा लाभों को देते हुए बहाल किया गया है।