सिंगल स्क्रीन में नहीं
राजधानी में तीन सिंगल स्क्रीन है लेकिन तीनों में यह फिल्म नहीं लगी है। वितरक लाभांश तिवारी बताते हैं कि मेकर्स ने सिंगल स्क्रीन में फिल्म दी ही नहीं है।ताड़मेटला कांड, झीरम घाटी और सलवा जुडूम
फिल्म की शुरुआत बस्तर के एक भीतरी इलाके में कुछ ग्रामीणों के द्वारा तिरंगा के सामने राष्ट्रगान से होती है। इससे बौखलाए नक्सली न सिर्फ तिरंगे की जगह लाल झंडा फहराते हैं, बल्कि इसकी सजा उस ग्रामीण की नृशंस हत्या करके देते हैं, जिसने यह दुस्साहस किया था। फिल्म में नक्सल इतिहास की सबसे बड़ी घटना को दिखाया गया है जिसमें छह अप्रैल 2010 को सुकमा जिले के ताड़मेटला गांव में हुई थी। इसके अलावा झीरम कांड को भी रेखांकित किया गया है जब नक्सलियों ने 25 मई 2013 को कांग्रेस नेताओं के काफिले को निशाना बनाकर कायराना हमला किया था, इस हमले में नक्सलियों ने 33 लोगों की निर्मम तरीके से हत्या कर दी थी। फिल्म में सलवा जुडूम को भी दिखाया गया है।इनका कहना है
यह सब्जेक्टिव फिल्म है। इसका बहुत ज्यादा प्रचार नहीं हुआ है। उस हिसाब से ऑक्यूपेंसी अच्छी है। इस तरह की फिल्में माउथ पब्लिसिटी से उठती हैं।मनीष देवांगन, मल्टीप्लेक्स संचालक
फिल्म में बस्तर की ज्वलंत समस्या नक्सलवाद को दिखाया गया है। फिल्म सच्चाई की पैरवी करती नजर आई
विकास साहू, दर्शक
जमीनी हकीकत
फिल्म बढिय़ा है। एक बार जरूर देखनी चाहिए। फिल्म बस्तर की जमीनी हकीकत को बयां करती है।
सौरभ पाटिल, दर्शक
बस्तर का व्यक्ति कनेक्ट नहीं हो पाएगा
बस्तर क्षेत्र में लंबे समय से पुलिसिंग कर चुके एक अधिकारी ने फिल्म देखने के बाद पत्रिका को बताया, मूवी का नाम सलवा जुडुम कर देना था क्योंकि इसमें उसी पर ज्यादा फोकस किया गया है। वैसे भी सलवा जुडुम वहां का एक छोटा सा पार्ट रहा है। फिल्म में जैसा गांव दिखाया गया है वो बस्तर से मेल नहीं खाता बल्कि साउथ के किसी गांव सा दिखाई दे रहा है। फ्रेमिंग भी बस्तर की नहीं है। जिस तरह के कैरेक्टर लिए गए हैं उनसे बस्तर का आदमी कनेक्ट नहीं हो पाएगा।