सुआ नृत्य
इस नृत्य को मुकुटधर पांडे ने छत्तीसगढ़ का गरबा नृत्य कहा है। इस नृत्य छत्तीसगढ़ में महिलाएं और किशोरियों द्वारा बड़े उत्साह से किया जाता है। इस नृत्य का प्रारम्भ दीवाली पहले जब धान पक जाता है तब प्रारम्भ होता है। और इस नृत्य का समापन गौरा गौरी विवाह (शिव पार्वती) दीपावली के दिन समाप्त होता है।
महिलाएं इस नृत्य को गोला आकर बनाकर सामूहिक रूप से नाचती है। और गोले के बिच में एक टोकरी में धान या अनाज होता है ,जिसके ऊपर मिटटी से बने सुआ (तोता) को रखते है। और ताली के थाप पर गोल घूम घूम कर नृत्य कराती है। और सुआ गीत गति है। वस्तुतः ये कहा जाये की ये प्रेम नृत्य और गीत होता है , जिसमे शिव और गौरी के प्रेम गीत को गाया जाता है।
करमा नृत्य
आदिवासी और लोक जनजीवन कर्ममूलक सिद्धांतों पर आधारित इस नृत्य में कर्म प्रधानता है। करमा नृत्य करम देवता को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। करमा नृत्य का क्षेत्र बहुत विस्तृत है ,छत्तीसगढ़ में पुरे राज्य में इसका विस्तार है।
पंथी नृत्य
छत्तीसगढ़ में निवास करने वाले सतनामी समाज के लोगों द्वारा विशेष रूप से इस नृत्य को किया जाता है। इस नृत्य में परमपुज्य बाबा गुरु घासीदास के जीवन वृतांत को गाया जाता है जिसमे बाबा जी के द्वारा किये गए कार्यों का बखान किया जाता है।
सतनाम पंथ में चलने वालेलोगों द्वारा इस नृत्य को प्रारम्भ 18 दिसंबर से प्रारम्भ करते है पंथी गीतों में बाबा जी के बताये रस्ते में चलने का आह्वान करते है। और जीवन को क्षण भंगुर मानते हुए जीवन को सत्यनाम सत्य कर्म में लगाने के लिए कहा जाता है। और बाबा गुरु घासीदास के उपदेशों का वर्णन करते हुए नृत्य प्रस्तुत करते है।
पंथी नृत्य गोलाई के साथ किया जाता है जिसमे नृतक दल एक गोले में नृत्य करते है, वैसे तो पंथी नृत्य दो प्रकार के माना जा सकता है। पहले नृत्य पद्धति में वादक कलाकार बैठे होते है ,और नृतक गोले में नृत्य कर बाबा जी के वाणियो को बताते है। जबकि दूसरे प्रकार में नृतक के साथ वादक कलाकार भी नृत्य करते हुए अपने कला का प्रदशन करते है।
गेंड़ी नृत्य
प्रतिवर्ष गेड़ी नृत्य श्रावण मॉस के अमावश्या से प्रारम्भ होकर भादो मास के पूर्णिमा तक चलता है इस नृत्य में गेड़ी में नर्तक नृत्य नृत्य के समय दो लोग मोहरी और तुड़बड़ी बजाये जाते है।
मुरिया जनजाति में प्रचलित गेड़ी नृत्य गोटुल प्रथा के अंतरगत युवाओ द्वारा नृत्य किया जाता है। गोटुल प्रथा के अंतर्गत मुरिया युवक पर अतितीव्र गति से नृत्य करते है। साथ ही इस दौरान अपने कौशल का प्रदर्शन करते है। तीव्र गति से करने वाले नृत्य को डिंतोंग कहते है।
परधोनी नृत्य
यह आदिवासी नृत्य अनुष्ठान से सम्बंधित है जिसमे बारात के अगुवानी के लिए किया जाता है। ये नृत्य विवाह के अवसर किया जाता है। आंगन में हाथी बनाकर नचाया जाता है। और अनुष्ठान किया जाता है।
सरहुल नृत्य
सरहुल नृत्य उराव जनजाति की प्रमुख नृत्य है उरवा जनजाति के लोग मानते है की सरई पेड़ पर उनके ग्राम देवता निवास होता है इसलिए वो हर वर्ष चैत्र मास के पूर्णिमा पर शाल वृक्ष की पूजा करते है और शाल वृक्ष के समीप नृत्य करते है। ये नृत्य विशेष रूप से रायगढ़ और जशपुर जिला में निवास रत उरवा जनजाति के प्रमुख ,सर्वाधिक महत्वपूर्ण और पारम्परिक नृत्य है।
गौर नृत्य
गौर नृत्य बस्तर में मदियपा जनजाति जात्रा नाम का वार्षिक पर्व मानती है। जात्रा के दौरान गॉव के युवक युवतिया रत भर नृत्य कराती है इस नृत्य के दौरान माड़िया युवक गौर नामक जंगली जानवर के सींग को अपने सिर पर धारण करता है और उसे कौड़ी से सजाया रहता है। इस कारण इस नृत्य को गौर नृत्य कहते है।