वहीं वहीं गुरुवार से प्रदेश में कुपोषित बच्चों की तलाश के लिए वजन त्योहर की शुरुआत हो गई है। इसके माध्यम से प्रदेश के 50 हजार आंगनबाड़ी केंद्रों में 0 से 5 साल तक के बच्चों का वजन लेकर उनके कुपोषण के स्तर का पता लगाया जाएगा। कुपोषण की पहचान के लिए बच्चों को पीले, हरे और लाल रंग से दिया जाएगा। यदि बच्चे को लाल रंग मिला, तो वह गंभीर रूप कुपोषित माना जाएगा। पीला रंग कुपोषित और हरा रंग सामान्य वजन वाले बच्चों के लिए होगा।
कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में आंगनबाड़ी केंद्रों की सुविधा सबसे महत्वपूर्ण है। इसके बावजूद प्रदेश बहुत से आंगनबाड़ी केंद्र सुविधा विहीन है। जनवरी 2017 तक की स्थिति में 20 हजार से अधिक आंगनबाड़ी केंद्रों में बिजली की सुविधा नहीं है। इसी प्रकार 12 हजार 338 आंगनबाड़ी केंद्रों के पास स्वयं के भवन नहीं है। 6 हजार आंगनबाड़ी केंद्रों में शौचालय और 4 हजार 585 आंगनबाड़ी केंद्रों में पेयजल की सुविधा मौजूद नहीं है।
प्रदेश में कुपोषण की स्थिति संतोषजनक नहीं है। हालांकि, विभागीय अधिकारियों का दावा है कि कुपोषण में लगातार कमी आ रही है। इसके बावजूद जनवरी 2017 तक की स्थिति में प्रदेश में 5 लाख 15 हजार 366 बच्चे कुपोषित पाए गए थे। कुपोषणा की भयावह स्थिति मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के विधानसभा क्षेत्र राजनांदगांव में ही है। यहां 39 हजार 435 बच्चे कुपोषित पाए गए थे। 34 हजार 314 कुपोषित बच्चों के साथ बिलासपुर जिला दूसरे नम्बर पर हैं।