इसलिए बढ़ाया किराया
मार्च 2020 के तीसरे महीने में एक झटके से रेल सेवाएं बंद करने के फैसले ने स्टैंड को तगड़ा झटका दिया। पूरी तरह जमीन पर आ चुके स्टैंड को उम्मीद थी कि स्थिति में जल्द बदलाव आ जाएगा। अब दसवें महीने में प्रवेश कर चुका रेलवे का यह फैसला उम्मीदें तोड़ चुका है। इसलिए सीमित संख्या में चल रही यात्री ट्रेनों में आना-जाना कर रहे वाहन मालिकों से बढ़ाकर किराया लिया जाना स्टैंड मालिकों के बीच मजबूरी में लिया गया फैसला माना जा रहा है। पीड़ा तो है, लेकिन दूसरा कोई विकल्प है नहीं, क्योंकि कहीं भी सुनवाई नहीं हो रही है।
मार्च 2020 के तीसरे महीने में एक झटके से रेल सेवाएं बंद करने के फैसले ने स्टैंड को तगड़ा झटका दिया। पूरी तरह जमीन पर आ चुके स्टैंड को उम्मीद थी कि स्थिति में जल्द बदलाव आ जाएगा। अब दसवें महीने में प्रवेश कर चुका रेलवे का यह फैसला उम्मीदें तोड़ चुका है। इसलिए सीमित संख्या में चल रही यात्री ट्रेनों में आना-जाना कर रहे वाहन मालिकों से बढ़ाकर किराया लिया जाना स्टैंड मालिकों के बीच मजबूरी में लिया गया फैसला माना जा रहा है। पीड़ा तो है, लेकिन दूसरा कोई विकल्प है नहीं, क्योंकि कहीं भी सुनवाई नहीं हो रही है।
चाहिए सहयोग आपका
यात्री ट्रेनों के सहारे यह वर्ग भी अपना और सहयोगी कर्मचारियों के परिवार की गाड़ी चलाता था। ट्रेनों के पहियों पर ब्रेक लगने के बाद परिवार की चलती गाड़ी पर भी ब्रेक लग चुका है। सहयोगियों की रोजी-रोटी चलती रहे, इसे ध्यान में रखकर स्टैंड का किराया बढ़ाना पीड़ादायक फैसला था। आना-जाना कर रहे यात्रियों से बढ़ा हुआ किराया लिए जाने के बाद एवज में सुनने को मिल रहे शब्द नाराज तो करते हैं, लेकिन जवाब के पीछे सिर्फ एक ही एहसास होता है कि आपात स्थितियों में सहयोग दें। हम भी भारी अर्थ संकट का सामना कर रहे हैं।
यात्री ट्रेनों के सहारे यह वर्ग भी अपना और सहयोगी कर्मचारियों के परिवार की गाड़ी चलाता था। ट्रेनों के पहियों पर ब्रेक लगने के बाद परिवार की चलती गाड़ी पर भी ब्रेक लग चुका है। सहयोगियों की रोजी-रोटी चलती रहे, इसे ध्यान में रखकर स्टैंड का किराया बढ़ाना पीड़ादायक फैसला था। आना-जाना कर रहे यात्रियों से बढ़ा हुआ किराया लिए जाने के बाद एवज में सुनने को मिल रहे शब्द नाराज तो करते हैं, लेकिन जवाब के पीछे सिर्फ एक ही एहसास होता है कि आपात स्थितियों में सहयोग दें। हम भी भारी अर्थ संकट का सामना कर रहे हैं।
वाहन मालिकों का दर्द
सूनसान साइकिल स्टैंड में अब साइकिल की संख्या बेहद कम हो चुकी है। जो हैं उनके मालिकों से 5 रुपए की जगह 8 रुपए, बाइक या स्कूटर मालिकों से 6 रुपए की जगह 8 रुपए और चार पहिया वाहन मालिकों से 25 रुपए की जगह 30 या 40 रुपए जैसा किराया पीड़ा तो पहुंचा रहा है। लेकिन, यह पीड़ा भी किसी तरह सही जा रही है, क्योंकि हर वर्ग सडक़ पर आ चुका है। कुछ शब्द कहने और सुनने के बाद सूने स्टैंड को देखकर स्टैंड मालिकों की स्थिति जानी और समझी जा रही है।
सूनसान साइकिल स्टैंड में अब साइकिल की संख्या बेहद कम हो चुकी है। जो हैं उनके मालिकों से 5 रुपए की जगह 8 रुपए, बाइक या स्कूटर मालिकों से 6 रुपए की जगह 8 रुपए और चार पहिया वाहन मालिकों से 25 रुपए की जगह 30 या 40 रुपए जैसा किराया पीड़ा तो पहुंचा रहा है। लेकिन, यह पीड़ा भी किसी तरह सही जा रही है, क्योंकि हर वर्ग सडक़ पर आ चुका है। कुछ शब्द कहने और सुनने के बाद सूने स्टैंड को देखकर स्टैंड मालिकों की स्थिति जानी और समझी जा रही है।
उपाय सिर्फ एक
वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए अब रेलवे से खत्म हो रही ठेके की अवधि में कम से कम 1 माह का अतिरिक्त समय दिए जाने की मांग रखने का विचार है। अब रेल प्रबंधन इस पर क्या फैसला लेता है, यह स्टैंड मालिकों का पक्ष रखने के बाद ही सामने आ पाएगा। वैसे यह वर्ग भी दूसरे वर्ग की ही तरह बेहद आर्थिक संकट का सामना कर रहा है।
वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए अब रेलवे से खत्म हो रही ठेके की अवधि में कम से कम 1 माह का अतिरिक्त समय दिए जाने की मांग रखने का विचार है। अब रेल प्रबंधन इस पर क्या फैसला लेता है, यह स्टैंड मालिकों का पक्ष रखने के बाद ही सामने आ पाएगा। वैसे यह वर्ग भी दूसरे वर्ग की ही तरह बेहद आर्थिक संकट का सामना कर रहा है।