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बता दें कि स्काईवाक का निर्माण करने वाले ठेकेदार का अभी भी लगभग 12 करोड़ बिल भुगतान बाकी है। वहीं स्काईवॉक में लगने वाले लोहे के पार्ट, एस्केलेटर, लिफ्ट जैसे महंगे सामान धूल खा रहे हैं तो स्काईवाक के ऊपर लगे लोहे के एंगल जंग लगने से जर्जर हो चुके हैं। पिछले पांच सालों से निर्माण में रोक लगने से अधूरा ढांचा राजनीतिक प्रतिद्वंदिता को बयां कर रहा है। इन पांच सालों के दौरान सरकार ने स्काईवाक के उपयोग और अनुपयोग को लेकर कई कमेटियां गठित की, लेकिन निर्माण पूरा नहीं कराने का ही फैसला लिया। जबकि अभी तक जितना निर्माण हुआ है उस पर 50 करोड़ से ज्यादा सरकारी खजाने से खर्च हो चुका है।
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कांग्रेस के सत्ता में आते ही लगी थी रोक साल 2016 में स्कॉईवाक प्रोजेक्ट आने के साथ ही कांग्रेस विरोध में थी। जैसी ही 2018 में सत्ता आते ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सबसे पहले निर्माण में रोक लगा दिया। तब से अधूरा स्काईवाक अधर में लटक रहा है। इतना ही नहीं 70 करोड़ की लागत पर सवाल उठाया और भ्रष्टाचार का हवाला देते हुए जांच ईओडब्ल्यूओ को सौंप दिया था। परंतु उसका कोई नतीजा आज तक सामने नहीं आया।