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उनका आरोप है कि भाजपाइयों की साजिश के चलते राजभवन में विधेयकों को रोका गया है। उन्होंने कहा, भाजपा का राजनीतिक चरित्र मूलत: लोकतंत्र विरोधी है। संविधान के अनुच्छेद 200 में राज्य की विधानसभा के द्वारा पारित विधेयक के संदर्भ में राजभवन के दायित्व का उल्लेख है, लेकिन विपक्ष के द्वारा शासित राज्यों में राजभवन के आड़ में दुर्भावना पूर्वक वीटो के रूप में उपयोग किया जा रहा है, जो की गलत है। जन सरोकार के महत्वपूर्ण विधेयक को रोकना तीन चौथाई से बड़ी बहुमत से निर्वाचित सरकार का, विधायिका का और छत्तीसगढ़ की जनता का अपमान है। उन्होंने कहा, विधानसभा में पारित आरक्षण संशोधन विधेयक सहित नौ विधेयक लंबे समय से राज्यपाल की सहमति के लिए लंबित हैं। इनमें से कई 2020 की शुरुआत से हैं। उन्होंने कहा, राजभवन में अटके विधेयकों को सर्वोच्च न्यायालय ने कड़ी टिप्पणी की है। इसमें राज्यपालों को समझाइए देते हुए यह कहा कि चुनी हुई राज्य सरकारों के द्वारा पारित विधेयक के संदर्भ में राजभवन को तत्परता बरतनी चाहिए।