छत्तीसगढ़ के इस जिले में पहली बार ग्रीन एप्पल की खेती, youtube बन रहा मददगार, जानिए कैसे?
Green Apple Cultivation: ग्रीन एप्पल का नाम आते ही आप के मतष्कि में कश्मीर और शिमला की तस्वीरें उभर ने लगती हैं। अपने स्वाद के लिए मशहूर ये ग्रीन एप्पल अब छत्तीसगढ़ में उगाई जा रही है।
Green Apple Cultivation: औद्योगिक क्षेत्र में पहचान बना चुका रायगढ़ जिला अब खेती में भी नए-नए प्रयोग शुरू कर रहा है। ठंडे क्षेत्रों में होने वाले ग्रीन एप्पल की खेती अब रायगढ़ में भी की जा रही है। पुसौर ब्लाक के तीन किसान प्रायोगिक तौर पर इसकी खेती कर रहे हैं।
मौजूदा समय में इसके पेड़ में फूल आना शुरू हो चुका है, मार्च में फल निकलना भी शुरू हो जाएगा। ग्रीन एप्पल की खेती मुख्यत: ठंडी इलाकों में होती है, लेकिन रायगढ़ जिले के पुसौर विकासखंड अंतर्गत सुर्री गांव के किसान दुर्गेश नायक इसकी खेती कर रहे हैं। दुर्गेश नायक के साथ पास गांव तेतला के दो किसान भी ग्रीन एप्पल की खेती शुरू किए हैं।
दुर्गेश नायक बताते हैं वे वर्षों से परंपरागत धान, सब्जी की खेती करते आ रहे हैं, लेकिन खेती में ही कुछ अलग करने की मंशा से वे इस एक साल पहले ग्रीन एप्पल की खेती पर विचार किए। इसके लिए चूंकि उनके पास जमीन हैं तो वे इसको लेकर उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों से मिले। वहां दुर्गेश नायक की खेती के नवाचार को लेकर विभागीय अधिकारियों ने भी भरपूर सहयोग किया।
विभाग की ओर से ओडिशा प्रांत के कटक से करीब 250 पौधे मंगा कर किसान को दिया गया। यह पौधे करीब अब दुर्गेश के पास आए तो करीब 7 से 8 इंच के थे। यह यह पौधे 7 से 8 फीट तक हो गए हैं। पिछले साल मौसम बिगड़ने के साथ क्षेत्र में ओले भी गिरे थे। इससे ग्रीन एप्पल नहीं हो पाया। इस बार अच्छी खेती की संभावना है। किसान दुर्गेश की खेत में लगे ग्रीन एप्पल के पेड़ों पर फूल आना शुरू हो गया है। इसका फल मार्च में निकलना शुरू हो जाएगा।
हरे सेब के पेड़ों को नियमित रूप से पानी, खाद, और छंटाई की आवश्यकता होती है। वहीं अन्य फसल की तरह इसमें भी कई प्रकार के कीट और रोग लग सकते हैं। इसके लिए नियमित देखभाल और दवा छिड़काव समय-समय पर किया जाता है। जलवायु को लेकर उनका कहना है कि ग्रीन एप्पल 45 डिग्री तापमान को बर्दाश्त कर लेता है।
1 एकड़ से हुई शुरुआत
दुर्गेश नायक का कहना है यह खेती इस क्षेत्र के लिए नया है। इसकी वजह से मौजूदा समय में एक एकड़ में ही इसकी खेती शुरू की गई है। खेती की स्थिति को देखते हुए आगे इसे और भी बढ़ाया जा सकता है। इसकी तरह दो अन्य किसानों ने भी एक-एक एकड़ में खेती किए हैं। इसकी देखभाल के लिए समय-समय पर उद्यानिकी विभाग के अधिकारी व यू-ट्यूब से मदद ली जाती है।
पहले साल ज्यादा रहती है लागत
किसान दुर्गेश ने बताया कि यदि कोई पहली बार इस खेती को करना चाहेगा तो उसकी लागत ज्यादा होगी। फेंसिंग के अलावा पानी के लिए बोर पंप, ड्रीप सिस्टम लगाने पर अधिक खर्च होगा, लेकिन दूसरे साल यह सारे संसाधन पहले से मौजूद रहेेंगे। इससे दूसरे साल लागत कम हो जाती है।
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