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Podcast शरीर ही ब्रह्माण्ड : अन्न है उत्पत्ति और विनाश का कारक

Gulab Kothari Article Sharir Hi Brahmand: आत्मा ही शरीर का चालक है। परा प्रकृति का क्षेत्र है। शरीर अपरा-जड़-क्षेत्र है। हम शरीर का ही अस्तित्व मानकर जीते हैं, कर्म करते हैं। आत्मा को जानने के प्रश्न हमारे मन में उठते ही नहीं। हां, शास्त्रों को सुनते समय हम आत्मा का विवेचन भी सुनते हैं, किन्तु स्वयं से जोड़ नहीं पाते। अपने से भिन्न किसी वस्तु को आत्मा मान लेते हैं। शरीर ही ब्रह्माण्ड शृंखला में सुनें पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का यह विशेष लेख- अन्न है उत्पत्ति और विनाश का कारक

जयपुरDec 13, 2024 / 04:10 pm

Hemant Pandey

अन्न पोषक तत्त्व को कहते हैं। जो पोषण करता है। शरीर का पोषण अन्न का पार्थिव भाग करता है। मन का पोषण चन्द्रमा एवं अन्य प्राणी का मन करता है।

अन्न पोषक तत्त्व को कहते हैं। जो पोषण करता है। शरीर का पोषण अन्न का पार्थिव भाग करता है। मन का पोषण चन्द्रमा एवं अन्य प्राणी का मन करता है।

अन्न पोषक तत्त्व को कहते हैं। जो पोषण करता है। शरीर का पोषण अन्न का पार्थिव भाग करता है। मन का पोषण चन्द्रमा एवं अन्य प्राणी का मन करता है। बुद्धि का पोषण सूर्य करता है। जीव का पोषण कर्मफलों से होता है। कर्म का मूल भी क्रिया, क्रिया का मूल प्राण, प्राण का मूल बुद्धि, बुद्धि का मूल पुन: मन और कामना। मन-अन्न-कामना एक ही परिवार के तत्त्व हैं। स्वामी चन्द्रमा है।
Gulab Kothari Article शरीर ही ब्रह्माण्ड: “शरीर स्वयं में ब्रह्माण्ड है। वही ढांचा, वही सब नियम कायदे। जिस प्रकार पंच महाभूतों से, अधिदैव और अध्यात्म से ब्रह्माण्ड बनता है, वही स्वरूप हमारे शरीर का है। भीतर के बड़े आकाश में भिन्न-भिन्न पिण्ड तो हैं ही, अनन्तानन्त कोशिकाएं भी हैं। इन्हीं सूक्ष्म आत्माओं से निर्मित हमारा शरीर है जो बाहर से ठोस दिखाई पड़ता है। भीतर कोशिकाओं का मधुमक्खियों के छत्ते की तरह निर्मित संघटक स्वरूप है। ये कोशिकाएं सभी स्वतंत्र आत्माएं होती हैं।”
पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की बहुचर्चित आलेखमाला है – शरीर ही ब्रह्माण्ड। इसमें विभिन्न बिंदुओं/विषयों की आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से व्याख्या प्रस्तुत की जाती है। गुलाब कोठारी को वैदिक अध्ययन में उनके योगदान के लिए जाना जाता है। उन्हें 2002 में नीदरलैन्ड के इन्टर्कल्चर विश्वविद्यालय ने फिलोसोफी में डी.लिट की उपाधि से सम्मानित किया था। उन्हें 2011 में उनकी पुस्तक मैं ही राधा, मैं ही कृष्ण के लिए मूर्ति देवी पुरस्कार और वर्ष 2009 में राष्ट्रीय शरद जोशी सम्मान से सम्मानित किया गया था। ‘शरीर ही ब्रह्माण्ड’ शृंखला में प्रकाशित विशेष लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें नीचे दिए लिंक्स पर

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