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बिल गेट्स और डीप स्टेट, वैश्विक शक्ति का खेल

आज का ‘डीप स्टेट’ यानी यह तंत्र पूंजीवाद की लाभ कमाने और माक्र्सवाद की विश्व शक्ति पाने की लालसा का मिश्रण है। ये लोग लोकतंत्र, मानवाधिकार और स्वतंत्रता जैसे मूल्यों का उपयोग अपने हित साधने के लिए हथियार की तरह करते हैं।

जयपुरDec 13, 2024 / 04:33 pm

Hemant Pandey

यह पहला मौका नहीं है जब गेट्स को भारत में आलोचना का सामना करना पड़ा हो। 2007 में, बीएमजीएफ द्वारा वित्त पोषित संस्था 'पाथ' (प्रोग्राम फॉर अप्रोप्रिएट टेक्नोलॉजी इन हेल्थ) ने भारत के आदिवासी क्षेत्रों में एचपीवी वैक्सीन का परीक्षण किया। आरोप है कि इन परीक्षणों में नैतिक मानकों की अनदेखी की गई, जैसे प्रतिभागियों से बिना सूचित सहमति के परीक्षण करना और सुरक्षा उपायों का अभाव। इसका परिणाम प्रतिभागियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव और कई मौतों के रूप में सामने आया।

यह पहला मौका नहीं है जब गेट्स को भारत में आलोचना का सामना करना पड़ा हो। 2007 में, बीएमजीएफ द्वारा वित्त पोषित संस्था ‘पाथ’ (प्रोग्राम फॉर अप्रोप्रिएट टेक्नोलॉजी इन हेल्थ) ने भारत के आदिवासी क्षेत्रों में एचपीवी वैक्सीन का परीक्षण किया। आरोप है कि इन परीक्षणों में नैतिक मानकों की अनदेखी की गई, जैसे प्रतिभागियों से बिना सूचित सहमति के परीक्षण करना और सुरक्षा उपायों का अभाव। इसका परिणाम प्रतिभागियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव और कई मौतों के रूप में सामने आया।

भारत को प्रयोगशाला कहने पर सवाल: विश्व में कई कंपनियां हैं जो परोपकार के नाम पर अपने हित साध रही हैं

माइक्रोसॉफ्ट के सह-संस्थापक और दुनिया के प्रमुख परोपकारियों में से एक बिल गेट्स का भारत के साथ संबंध जटिल और बहुआयामी है। बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन (बीएमजीएफ) से गेट्स ने भारत में स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा योगदान दिया है। इसके बावजूद, उनके प्रयासों को नैतिक चिंताओं और औपनिवेशिक मानसिकता से जुड़े विवादों के चलते आलोचना का भी सामना करना पड़ा है। बहुत से लोग गेट्स का संबंध ‘डीप स्टेट’ से जोड़ते हैं। ‘डीप स्टेट’ कोई संगठन नहीं बल्कि एक अवधारणा है, जो विश्व के प्रमुख अमीरों का प्रतिनिधित्व करता है। यह अवधारणा तब चर्चा में आई जब भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर ‘डीप स्टेट’ से जुड़े होने का आरोप लगाया और राहुल गांधी ने भी कहा था कि बीजेपी का ‘डीप स्टेट’ देश को चबा रहा है। ‘डीप स्टेट’ एक ऐसा तंत्र है, जिसमें बड़ी-बड़ी कॉरपोरेट कंपनियां, राजनीतिक दल, सरकारी नौकरशाही और सत्ता के लालची लोग शामिल हैं। ऐतिहासिक रूप से, इसकी जड़ें ‘सिटी ऑफ लंदन’, ‘क्लब ऑफ रोम’ और ‘कमेटी ऑफ 300’ जैसे संस्थानों में थीं।

आज का ‘डीप स्टेट’ आधुनिक संस्थानों और तकनीकी दिग्गजों को अपने प्रभाव में शामिल करता है। यह तंत्र पूंजीवाद की लाभ कमाने की प्रेरणा और माक्र्सवाद की विश्व पर कब्जा जमाने की लालसा का मिश्रण है। अनेक टेक दिग्गजों ने फार्मा, हथियार और तेल उद्योगों के बड़े पूंजीपतियों के साथ गठजोड़ कर इस नेटवर्क को अधिक मजबूत किया है। ये लोग लोकतंत्र, मानवाधिकार और स्वतंत्रता जैसे मूल्यों का उपयोग हथियार की तरह अपने हितों को साधने और उन्हीं मूल्यों को कमजोर करने में करते हैं। भारत में, बिल गेट्स की हालिया टिप्पणी, जिसमें उन्होंने देश को ‘प्रयोगशाला’ कहा, ने व्यापक आक्रोश को जन्म दिया। गेट्स ने एक पॉडकास्ट के दौरान कहा कि भारत की सामाजिक-आर्थिक विविधता और बेहतर होता बुनियादी ढांचा इसे विभिन्न परियोजनाओं के परीक्षण के लिए आदर्श स्थान बनाता है। लेकिन आलोचकों ने इसे भारत को एक परीक्षण स्थल के रूप में देखने की मानसिकता करार दिया। सोशल मीडिया पर लोगों ने सवाल उठाए कि भारत, बाहरी ताकतों के ऐसे प्रयोग क्यों सहन करता है?

यह पहला मौका नहीं है जब गेट्स को भारत में आलोचना का सामना करना पड़ा हो। 2007 में, बीएमजीएफ द्वारा वित्त पोषित संस्था ‘पाथ’ (प्रोग्राम फॉर अप्रोप्रिएट टेक्नोलॉजी इन हेल्थ) ने भारत के आदिवासी क्षेत्रों में एचपीवी वैक्सीन का परीक्षण किया। आरोप है कि इन परीक्षणों में नैतिक मानकों की अनदेखी की गई, जैसे प्रतिभागियों से बिना सूचित सहमति के परीक्षण करना और सुरक्षा उपायों का अभाव। इसका परिणाम प्रतिभागियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव और कई मौतों के रूप में सामने आया। ‘पाथ’ पर भारत के साथ-साथ पेरू और युगांडा जैसे देशों में भी ऐसे ही आरोप लगे। एक संसदीय जांच ने ‘पाथ’ को भारतीय कानूनों का उल्लंघन करने और टीकों को बढ़ावा देने के लिए गुप्त तरीके अपनाने का दोषी पाया।
गेट्स की परोपकारिता को उनके आलोचक अक्सर विकासशील देशों में शासन को प्रभावित करने के उपकरण के रूप में भी देखते हैं। चाहे वह जेनेटिक मोडिफाइ फसलों को बढ़ावा देना हो या स्वास्थ्य नीतियों को नियंत्रित करना, गेट्स पर स्थानीय जरूरतों की अनदेखी करते हुए कॉरपोरेट लाभ को प्राथमिकता देने का आरोप लगाया गया है। कोविड-19 महामारी के दौरान गेट्स की वैक्सीन वितरण में अहम भूमिका निभाने, लेकिन बौद्धिक संपदा अधिकारों को माफ करने के विरोध में आलोचना हुई। इससे भारत जैसे देशों में सस्ती वैक्सीन उत्पादन को बढ़ावा मिल सकता था।

भारत में उनका आधार बायोमेट्रिक पहचान प्रणाली को समर्थन भी विवाद का कारण बना। इसे तकनीकी प्रगति के नाम पर कॉरपोरेट हितों को बढ़ावा देने के रूप में देखा गया। आलोचकों का मानना है कि गेट्स ने परोपकार के नाम पर एक वैश्विक एजेंडा थोपने की कोशिश की है, जो स्थानीय स्वायत्तता और भारतीय नागरिकों के हितों के खिलाफ है। गेट्स की टिप्पणियों और कार्यों ने भारत में विदेशी वित्त पोषित प्रोजेक्ट्स की पारदर्शिता-जवाबदेही की आवश्यकता को उजागर किया है। नागरिक संगठनों ने सार्वजनिक स्वास्थ्य और विकास की पहल को देश के नागरिकों के कल्याण को प्राथमिकता देने के लिए सख्त नियमों की मांग की है। इन प्रोजेक्ट्स की निगरानी के लिए मजबूत मानकों की जरूरत है ताकि कमजोर समुदायों का शोषण न हो सके। गेट्स द्वारा भारत को ‘प्रयोगशाला’ कहना केवल एक टिप्पणी नहीं थी, बल्कि यह उनके दृष्टिकोण को दर्शाता है। यह दृष्टिकोण भारत जैसे विकासशील देशों को परीक्षण स्थल के रूप में देखने और वैश्विक एजेंडा लागू करने की कोशिश का हिस्सा है।
बिल गेट्स, जो एक टेक्नोलॉजी विशेषज्ञ हैं, अब दवा उद्योग में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। वैश्विक स्वास्थ्य नीतियों को भी प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। इस प्रक्रिया में उन्होंने भारत जैसे देशों को कई बार विवादास्पद पहलों के लिए केंद्र बनाया है। गेट्स और उनकी फाउंडेशन द्वारा शुरू की गई पहलों ने कई बार भारतीय नागरिकों और नीति निर्माताओं को यह सोचने पर मजबूर किया है कि क्या उनकी गतिविधियां वास्तव में भारत के हित में हैं। इस प्रकार, बिल गेट्स और उनके प्रयासों को लेकर भारत में प्रशंसा और आलोचना का मिला-जुला स्वर सुनाई देता है। अंत में, यह आवश्यक है कि भारत विदेशी वित्त पोषित परियोजनाओं की सख्त निगरानी करे और ऐसे किसी भी प्रयास का विरोध करे, जो देश की स्वायत्तता और नागरिकों के अधिकारों को कमजोर करता है। भारतीय समाज को यह सुनिश्चित करना होगा कि विकासशील पहलों का लाभ पूरे देश को हो और वे केवल कुछ विशेष वर्गों या कॉरपोरेट हितों तक सीमित न रहें।
संजय दीक्षित, ऑथर, कमेंटेटर और भारतीय सिविल सेवा के पूर्व अधिकारी हैं। (लेखक के विचार उनके अपने हैं)

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