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कोर्ट ने कहा कि भारत के संविधान के 103 वें संशोधन के अनुसार, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के उम्मीदवारों को 10% आरक्षण प्रदान किया जाता है। बेंच ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट प्रशासन अपनी सेवाओं के मामलों में स्वायत्तता है और योग्यता मानकों को निर्धारित कर सकता है और आरक्षण योजना पर निर्णय ले सकता है। कोर्ट ने आगे कहा कि राज्य विधायिका को आरक्षण की एक वैधानिक योजना बनाने की अनुमति नहीं है, जो न्यायिक सेवा को नियंत्रित करेगी। यह भी पढ़ें