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प्रयागराज

कुंभ के दौरान हर अखाड़े में चलती है चेहरा-मोहरा कोर्ट

छावनी में जरा सी चूक पर चेहरा-मोहरा से मिलता है दंड

प्रयागराजFeb 07, 2019 / 07:06 pm

Akhilesh Tripathi

बाबा अखाड़ा

आलोक पण्ड्या
प्रयागराज. कुंभ के दौरान अखाड़ों के सारे शैव अखाड़ों के महंतों, श्रीमहंतों, थानापतियो और कोतावलों के अधिकार समाप्त हो जाते है। कुभ की छावनी में सिर्फ एक ही कोर्ट चलती है और वह है चेहरा-मोहरा। चेहरा-मोहरा में ही कुंभ के दौरान सारे निर्णय लिए जाते हैं। यह व्यवस्था कुंभ समापन के साथ समाप्त हो जाती है और फिर से अखाड़े के सारे महंतों को उनके अधिकार मिल जाते हैं। यह अनूठी परंपरा सैंकडों वर्ष से कुंभ मेले के दौरान चली आ रही है।
क्या है चेहरा-मोहरा
अखाड़े जब कुंभ क्षेत्र में आते हैं तो अपनी छावनी बनाते हैं। वहां धर्म ध्वजा फहराने के साथ ही पहले की व्यवस्थाएं भंग होकर सारे अधिकार चेहरा-मोहरा के पास चले जाते हैं। छावनी के केंद्र में एक मंचनुमा जगह बनाई जाती है। इस मंच पर एक तरफ चेहरा-मोहरा के लिए दो प्रधान नियुक्त किए जाते हैं। इनके अधीन चार उपप्रधान होते हैं। हर समय गादी पर एक प्रधान आवश्यक रूप से रहता है। कुंभ के दौरान छावनी के नियमो का पालन अखाड़े के सभी साधुओं को करना पड़ता है। अगर कोई नियम नहीं मानता है तो उसे चेहरे मोहरे पर बैठा प्रधान दंड दे सकता है। छावनी के नियम इतने कठिन होते हैं कि अगर मंच पर गलत तरीके से चढ़ जाता है तो भी प्रधान उसे दंड दे सकते हैं।
 

चेहरा-मोहरा के पीछे तर्क
कुंभ के दौरान नए साधु बनाए जाते हैं और कई साधुओं की शिकायतों का निवारण भी होता है। छावनी में बनाई गई कोर्ट का नाम चेहरा-मोहरा रखने के पीछे का कारण महानिर्वाणी अखाड़े के अवेशपुरी महाराज बताते हैं कि हर व्यक्ति का चेहरा यानी उसका व्यक्तित्व, बॉडी लैंग्वेज आदि देख कर निर्णय लिया जाता है। वहीं मोहरे का मतलब है, डाक्युमेंटेशन। यानी कौन संत कहां से आया है। उसकी पदमुद्रा क्या है। यह सब भी कागज देखकर निर्णय लिया जाता है।
 

शैव अखाड़ों का फ्रंट ऑफिस भी है चेहरा मोहरा

चेहरा-मोहरा एक तरह से अखाड़ों की छावनी का फ्रंट ऑफिस भी होता है। बाहरी व्यकित छावनी मे सीधे प्रवेश नहीं कर सकते हैं। पहले उन्हे चेहरा-मोहरा पर जाना पड़ेगा। वहीं से अनुमति के बाद वे छावनी मे दूसरी जगह जा सकेंगे।

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