हालांकि पांचवें चरण के मतदान से ठीक पहले बने राजनीतिक समीकरणों ने राजा भैया (Raja Bhaiya) का भाजपा को लेकर रुख जरूर साफ कर दिया। इसके बाद मिर्जापुर से सांसद और अपना दल (S) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल और राजा भैया (Raja Bhaiya) के बीच तीखी बयानबाजी ने तूल पकड़ लिया। इससे राजा भैया (Raja Bhaiya) की पार्टी कार्यकर्ता अनुप्रिया पटेल के खिलाफ लामबंद हो गए। इसके साथ ही राजा भैया (Raja Bhaiya) की पार्टी के कार्यकर्ताओं ने मिर्जापुर में अनुप्रिया पटेल (Anupriya Patel) के खिलाफ प्रचार करने का ऐलान कर दिया।
राजा भैया के गढ़ प्रतापगढ़ में बिगड़ सकता है भाजपा का खेल
राजा भैया (Raja Bhaiya) और अनुप्रिया पटेल (Anupriya Patel) की बयानबाजी के बाद जो माहौल बन रहा है। उससे साफ है कि राजा भैया (Raja Bhaiya) भाजपा के खिलाफ हो गए हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि ठाकुर बाहुल्य सीटों पर राजा भैया (Raja Bhaiya) भाजपा का खेल बिगाड़ सकते हैं। माना जा रहा है कि छठे चरण में प्रतापगढ़, फूलपुर, इलाहाबाद, सुल्तानपुर और मछली शहर लोकसभा सीटों पर राजा भैया (Raja Bhaiya) की नाराजगी भाजपा को भारी पड़ सकती है। यह भी पढ़ेंः Mirzapur 3: कालीन भइया नहीं यहां राजा भइया खेलेंगे सियासी दांव, अनुप्रिया पटेल की होगी हालत पतली दरअसल, साल 1957 से अस्तित्व में आई प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर राज घरानों को किंगमेकर माना जाता है। इससे पहले इस इलाके का बड़ा हिस्सा फूलपुर लोकसभा सीट के तहत आता था। यहां 16 लोकसभा चुनावों में 11 बार राज परिवार से जुड़े सदस्यों ने चुनाव जीता है। इस सीट पर ठाकुर मतदाता किंग मेकर माना जाता है। हालांकि आजादी के बाद साल 1957 में सबसे पहले यहां से कांग्रेस के मुनीश्वर दत्त उपाध्याय जीतकर संसद पहुंचे थे। इस बार राज घराने से ताल्लुक रखने वाले राजा भैया (Raja Bhaiya) की नाराजगी के बाद प्रतापगढ़ में भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
सुल्तानपुर लोकसभा सीट कैसे प्रभावित करेंगे राजा भैया?
सुल्तानपुर के बाहुबली नेता और पूर्व विधायक चंद्रभद्र सिंह उर्फ सोनू सिंह ने हाल ही में समाजवादी पार्टी ज्वाइन की है। चंद्रभद्र सिंह उर्फ सोनू सिंह राजा भैया (Raja Bhaiya) के बेहद करीबी माने जाते हैं। इसके अलावा साल 2019 में सोनू सिंह ने सुल्तानपुर से बसपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था। इस दौरान उन्होंने भाजपा प्रत्याशी मेनका गांधी को कड़ी टक्कर दी थी। हालांकि वह 14 हजार वोटों से चुनाव हार गए थे। बाहुबली नेता सोनू सिंह का अपने क्षेत्र में काफी दबदबा है। उनके भाई यशभद्र सिंह उर्फ मोनू ब्लॉक प्रमुख रह चुके हैं। वह क्षेत्र में काफी सक्रिय भी रहते हैं। यह भी पढ़ेंः छठे चरण के मतदान से पहले बसपा को झटका, मायावती के करीबी रहे पूर्व IPS प्रेम प्रकाश भाजपा में शामिल, कौन हैं ये? कहा जाता है कि यूपी के सुल्तानपुर में विधानसभा का चुनाव हो या लोकसभा का, इस ताकतवर परिवार का फैक्टर हरदम काम करता है। इस परिवार का राजनीति में अच्छा-खासा दखल है। क्षत्रिय वोटरों में भी सोनू सिंह की अच्छी पकड़ है। दूसरी ओर राजा भैया भी क्षत्रिय समाज से आते हैं और वो भाजपा से नाराज भी हैं। ऐसे में यहां क्षत्रिय फैक्टर काम कर गया तो भाजपा के लिए इस बार यह सीट निकालना चुनौती बन जाएगा।
फूलपुर लोकसभा सीट का क्या है जातीय समीकरण?
इलाहाबाद लोकसभा सीट से सटी फूलपुर लोकसभा सीट पर पिछड़ी जाति के मतदाता निर्णायक होते हैं। यहां कुर्मी मतदाताओं की संख्या करीब तीन लाख से ज्यादा है। इसके अलावा यादव दो लाख, पिछड़ी जाति के अन्य मतदाता तीन लाख, मुस्लिम ढाई लाख, अनुसूचित जाति के मतदाता भी करीब ढाई लाख हैं। जबकि यहां ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या दो लाख और कायस्थ मतदाताओं की संख्या भी करीब दो लाख है। यह भी पढ़ेंः रायबरेली और अमेठी में टूट रहा कांग्रेस का अभेद्य किला? जानें राहुल-स्मृति की सीट का पूरा गणित यहां भाजपा ने प्रवीण पटेल को अपना उम्मीदवार बनाया है। जबकि सपा ने यादव और मुस्लिम मतदाताओं के साथ अन्य पिछड़ी जातियों के समीकरण को ध्यान में रखते हुए अमरनाथ मौर्य को प्रत्याशी बनाया है। बसपा ने जगन्नाथ पाल को चुनावी मैदान में उतारा है। इस सीट पर राजा भैया का प्रभाव भी माना जाता है। ऐसे में राजा भैया (Raja Bhaiya) की नाराजगी यहां भी भाजपा के रास्ते का रोड़ा बन सकती है।
इलाहाबाद लोकसभा सीट का भी जान लीजिए चुनावी समीकरण
देश को वीपी सिंह, लाल बहादुर शास्त्री, हेमवती नंदन बहुगुणा, मुरली मनोहर जोशी जैसी सियासी हस्तियां देने वाली इलाहाबाद लोकसभा सीट पर इस बार मुकाबला दो राजनीतिक वारिसों के बीच है। भाजपा ने यहां से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एवं पूर्व राज्यपाल पं. केशरीनाथ त्रिपाठी के बेटे नीरज त्रिपाठी को मैदान में उतारा है। जबकि इंडिया गठबंधन से समाजवादी पार्टी ने यह सीट कांग्रेस को दी है। कांग्रेस ने पुराने सपाई, आठ बार के विधायक और 2004 एवं 2009 में सांसद चुने गए कुंवर रेवती रमण सिंह के बेटे उज्ज्वल रमण सिंह पर दांव लगाया है। यह भी पढ़ेंः सोनिया और राहुल का स्पूफ वीडियो वायरल, अमेठी और रायबरेली के जिक्र ने फैलाई सनसनी यहां की पांच विधानसभा सीटों में से तीन पर भाजपा और एक सीट पर भाजपा के सहयोगी दल अपना दल (S) का कब्जा है। जबकि एक सीट सपा के पास है। 2022 के विधानसभा चुनाव में इलाहाबाद दक्षिणी सीट से भाजपा प्रत्याशी नंद गोपाल गुप्ता नंदी, करछना से भाजपा के पीयूष रंजन निषाद, बारा से अपना दल एस के वाचस्पति, कोरांव से भाजपा के राजमणि कोल और मेजा सीट से सपा के संदीप सिंह विधायक बने थे।
इलाहाबाद लोकसभा सीट पर ब्राह्मण और भूमिहारों की भूमिका निर्णायक
इलाहाबाद लोकसभा सीट पर ब्राह्मण और भूमिहार मतदाताओं की निर्णायक भूमिका मानी जाती है। पिछड़ों में निषाद, कुर्मी मतदाताओं की अधिक संख्या है। इस सीट पर कोल मतदाताओं की भी बड़ी संख्या है। चुनावों में इस सीट पर अगड़ी जाति के नेताओं का ही वर्चस्व रहा है। इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि अब तक सभी चुनावों में अगड़ी जाति के नेता ने ही जीत हासिल की है। इसी समीकरण को देखकर भाजपा ने नीरज त्रिपाठी, कांग्रेस ने सपा से आए उज्ज्वल रमण सिंह को उम्मीदवार बनाया है। हालांकि यहां भी राजा भैया का दखल भाजपा को नुकसान पहुंचा सकता है।मछली शहर लोकसभा सीट पर कैसे बन रहे समीकरण?
जौनपुर जिले की मछलीशहर लोकसभा सीट पर साल 2014 में भाजपा से रामचरित्तर निषाद और साल 2019 में इस सीट से भाजपा के बीपी सरोज ने मछली शहर में भगवा लहराया। बीपी सरोज ने पिछली बार मात्र 181 वोटों से चुनाव जीता था। भाजपा ने इस बार भी बीपी सरोज पर ही दांव लगाया है। जबकि केराकत विधानसभा से विधायक तूफानी सरोज की बेटी प्रिया सरोज सपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। बसपा से कृपाशंकर सरोज मैदान में हैं। तीनों दलों के प्रत्याशी एक ही जाति के हैं। इसलिए इनके भाग्य का फैसला सवर्ण और पिछड़ी जाति के मतदाता करेंगे। यह भी पढ़ेंः 50 लाख के खेल में नपे एम्स के दो डॉक्टर, टेलीग्राम पर करते थे ये काम, एसओजी की कार्रवाई से मचा हड़कंप मछली शहर लोकसभा सीट पर करीब 3 लाख दलित, 2 लाख यादव, 1 लाख पटेल और 2 लाख अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता हैं। इनके अलावा करीब 1 लाख ब्राह्मण, 1 लाख क्षत्रिय और 80 हजार मुस्लिम मतदाता हैं। कहा जाता है कि यहां ब्राह्मणों और क्षत्रियों को नजरअंदाज करने वाले उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ता है। ऐसे में अगर राजा भैया (Raja Bhaiya) भाजपा के खिलाफ प्रचार अभियान में जुटे तो यहां भाजपा का कोर वोटर कट सकता है। ऐसे में पिछली बार मात्र 181 वोटों से चुनाव जीतने वाले भाजपा प्रत्याशी बीपी सरोज को इस बार चुनाव जीतना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।