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अतीत को पढ़ो, फिर वर्तमान को गढ़ो, तब आगे बढ़ो

आपातकाल कालादिवस पर परिचर्चा

ग्वालियरJun 25, 2024 / 10:28 pm

राहुल गंगवार

अतीत इसलिए पढ़ना जरूरी है क्योंकि कुछ काले पन्ने हमारे अतीत के इतिहास में भी होते हैं

आपातकाल कालादिवस पर परिचर्चा

ग्वालियर. स्वामी विवेकानंद ने कहा कि अतीत को पढ़ो, फिर वर्तमान को गढ़ो, तब आगे बढ़ो, अतीत पढऩा इसलिए जरूरी है, क्योंकि अतीत के गौरवमयी पन्ने हमें जीने की ताकत देते हैं, हमें प्रेरणा मिलती है। अतीत इसलिए पढऩा जरूरी है क्योंकि कुछ काले पन्ने हमारे अतीत के इतिहास में भी होते हैं, कुछ काले अध्याय भी होते है, जिन अध्यायों को पढऩे के बिना हमें सबक नहीं मिलता है। इसलिए 1975 की इस घटना से हम सबक लें, और हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज बोला- अगर सबक लेकर हम जागते रहे हिंदुस्तान के लोग तो इस धरती पर कोई मायका लाला ऐसा पैदा न हो जो कि 25 जून को दफनाने की जरूरत कर सकें। उक्त बात मंगलवार को पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया ने बाल भवन में आयोजित आपातकाल कालादिवस पर परिचर्चा में कही।
पवैया ने कहा कि हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस ने लोगों में संविधान को बदलने का भ्रम फैलाया जबकि उसी कांग्रेस ने कई बार संविधान में संशोधन किए। इस बात को सभी से छुपाया जाता है और हर बार कांग्रेस कोई न कोई झूठा बहाना लेकर भाजपा को घेरने का असफल प्रयास करती है। उन्होंने कहा कि इसी कारण आज लोगों ने कांग्रेस को नकार दिया है और फिर से एक बार मोदी पर अपना भरोसा जताया है।
उन्होंने कहा कि यह दिन भारत के इतिहास में लोकतंत्र की हत्या का दिन गिना जाता है। कांग्रेस सरकार ने 25 जून की रात को केवल अपनी कुर्सी बचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगा दी और संविधान का गला घोट दिया। आपातकालीन लगाने के बाद राजनीतिक नेताओं, पत्रकारों और अन्य को जेल में डाल दिया। इस आपातकाल के दौरान जनता के सभी मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था। सरकार विरोधी भाषणों और किसी भी प्रकार के प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया। समाचार पत्रों को विशेष आचार सहिता का पालन करने के लिए विवश किया गया और सरकारी सेंसर से गुजरना पड़ता था। घोषणा के साथ ही विरोधी दल के नेताओं को गिरफ्तार करवाकर अज्ञात स्थानों पर रखा गया, सरकार ने मीसा के तहत कदम उठाया। यह ऐसा कानून था जिसके तहत गिरफ्तार व्यक्ति को कोर्ट में पेश करने और जमानत मांगने का भी अधिकार नहीं था। विपक्षी दलों के बड़े नेता मोरारजी देसाई, अटल बिहारी बाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जार्ज फर्नांडिस, जयप्रकाश नारायण सभी को जेल भेज दिया गया। आपातकाल लागू करने के लगभग दो साल बाद विरोध की लहर तेज होती देख इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर 1977 में चुनाव करने की सिफारिश की।
जिलाध्यक्ष अभय चौधरी ने कहा कि 25 जून 1975 लोकतंत्र का काला दिवस है जिसे कभी भूला नहीं जा सकता है, क्योंकि इसमें आम आदमी की आवाज को दबा दिया गया था। उन्होंने कहा कि अहंकार में डूबी निरंकुश कांग्रेस सरकार ने एक ही परिवार को सत्ता सुख देने के लिए 21 महीनों तक देश में नागरिक अधिकार निलंबित कर दिए थे। इस अवसर पर मंच पर प्रदेश कार्यसमिति सदस्य एवं कार्यक्रम प्रभारी विवेक जोशी, धर्मेन्द्र नायक, राजेश दुबे, नीतेश शर्मा, जयप्रकाश मिश्रा, सुरेंद्र परिहार, कनवर किशोर मंगलानी, रामेश्वर भदौरिया, हेमलता बुधौलिया, दारा सिंह सेंगर, अमित जादौन, शैली शर्मा, गिर्राज कंसाना, विद्या थौराट मौजूद रहे।

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