उन्होंने कहा कि यह दिन भारत के इतिहास में लोकतंत्र की हत्या का दिन गिना जाता है। कांग्रेस सरकार ने 25 जून की रात को केवल अपनी कुर्सी बचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगा दी और संविधान का गला घोट दिया। आपातकालीन लगाने के बाद राजनीतिक नेताओं, पत्रकारों और अन्य को जेल में डाल दिया। इस आपातकाल के दौरान जनता के सभी मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था। सरकार विरोधी भाषणों और किसी भी प्रकार के प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया। समाचार पत्रों को विशेष आचार सहिता का पालन करने के लिए विवश किया गया और सरकारी सेंसर से गुजरना पड़ता था। घोषणा के साथ ही विरोधी दल के नेताओं को गिरफ्तार करवाकर अज्ञात स्थानों पर रखा गया, सरकार ने मीसा के तहत कदम उठाया। यह ऐसा कानून था जिसके तहत गिरफ्तार व्यक्ति को कोर्ट में पेश करने और जमानत मांगने का भी अधिकार नहीं था। विपक्षी दलों के बड़े नेता मोरारजी देसाई, अटल बिहारी बाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जार्ज फर्नांडिस, जयप्रकाश नारायण सभी को जेल भेज दिया गया। आपातकाल लागू करने के लगभग दो साल बाद विरोध की लहर तेज होती देख इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर 1977 में चुनाव करने की सिफारिश की।