इस मंदिर की विशेषता यहां पर विराजमान माता लक्ष्मी के 8 स्वरूप है। यह मंदिर अष्टलक्ष्मी के नाम से विख्यात है। मान्यता है कि यहां अष्टलक्ष्मी के दर्शन से धन, विद्या, वैभव, शक्ति व सुख की प्राप्ति होती है। यह मंदिर विशाल गुंबद वाला है। मंदिर में देवी लक्ष्मी की 8 प्रतिमाएं भिन्न-भिन्न तल पर स्थापित हैं।
यहां आनेवाले भक्तों को आदि लक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, धैर्य लक्ष्मी, गज लक्ष्मी, विद्या लक्ष्मी, विजया लक्ष्मी, संतना लक्ष्मी व धन लक्ष्मी के दर्शन होते हैं। इस मंदिर के अंत में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का प्रतिमा है। यहां आनेवाले श्रद्धालु इस मंदिर के दर्शन किए बिना नहीं वापस नहीं जाते हैं।
कब बना था मंदिर? जानकार बताते हैं कि इस मंदिर का निर्माण 1974 में आरंभ किया गया था। इस मंदिर का निर्माण निवास वरदचेरियार की नेतृत्व में करवाया गया था। 5 अप्रैल 1976 में इस मंदिर में विधिवत पूजा-अर्चना शुरू हुई थी। मंदिर का निर्माण ऊँ के आकार का किया गया है। यह मंदिर तीन मंजिला है और 65 फीट लंबा व 45 फीट चौड़ा है।
8 कमल पुष्प अर्पित करने की है प्रथा जैसा कि हम सभी जानते हैं कि देवी लक्ष्मी को कमल का पुष्प अति प्रिय है। यही कारण है कि यहां आने वाले श्रद्धालु माता को कमल का पुष्प जरूर अर्पित करते हैं। इस मंदिर में 8 कमल पुष्प अर्पित करते हैं क्योंकि इस मंदिर में माता लक्ष्मी 8 स्वरूपों में विराजमान है। यही कारण है कि यहां आने वाले श्रद्धालु भिन्न-भिन्न कमल के पुष्प लेकर आते हैं।
कब खुलते हैं देवी लक्ष्मी के कपाट? माता अष्टलक्ष्मी मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए सुबह 6.30 बजे खुल जाते हैं। इसके बाद दोपहर 12 बजे से लेकर 4 बजे तक बंद रहते हैं। फिर 4 बते पुन: कपाट भक्तों के दर्शन के लिए खुलते हैं और रात्रि के 9 बजे बंद हो जाते हैं।