तीर्थ यात्रा

Sawan Shanivar- शनि का हजारों साल पुराना विशेष मंदिर,जहां आज भी होते हैं अद्भुत चमत्कार

– ऐसे समझें जानें इस मंदिर की खासियत
– समुद्री तल से लगभग 7000 फुट पर उत्तराखंड के खरसाली में विराजमान हैं चमत्कारी शनिदेव। कहा जाता है कि यहां पूर साल में एक दिन चमत्कार होता है।

Jul 15, 2023 / 11:58 am

दीपेश तिवारी

देश में सनातन धर्म के देवों के अनेक मंदिर हैं। इनमें से कुछ ऐसे मंदिर भी हैं, जिन्हें चमत्कारी माना जाता है कारण ये है कि यहां आज भी अद्भुत चमत्कार देखने को मिलते हैं।ऐसे में आज शनि प्रदोष पर हम एक ऐसे शनि मंदिर के बारे में बता रहे हैं, जो समुद्री तल से करीब 7000 फुट की ऊंचाई पर है।

दरअसल देवभूमि उत्तराखंड के खरसाली में चमत्कारी शनिदेव विराजमान हैं। इस मंदिर के संबंध में लोगों का कहना है कि यहां पर हर साल में चमत्कार होता है। वहीं इस चमत्कार जो कोई देख लेता है उसका भाग्य खुल जाता है। जिसके बाद वह व्यक्ति खुद को शनिदेव का परम भक्त मान लेता है। इस प्राचीन मंदिर में कांस्य की शनिदेव की मूर्ति मौजूद है।

इसके साथ ही इस शनि मंदिर में एक अखंड ज्योति भी है जो सदैव जलती रहती है। स्थानीय लोगों की ामने तों इस अखंड ज्योति के दर्शन मात्र से ही जीवन के सारे दुख दूर हो जाते हैं। मंदिर पुरोहितों का कहना है कि इस मंदिर में अद्भुत चमत्कार साल में एक बार कार्तिक पूर्णिमा के दिन होता है। जिसके तहत मंदिर के ऊपर रखे घड़े अपने आप अपना स्थान बदल लेते हैं।लेकिन ये कैसे होता है इसके बारे में कोई नहीं जानता।

वहीं माना जाता है कि जो भी भक्त मंदिर में दर्शन के लिए आता है उसके कष्ट हमेशा के लिए दूर हो जाते हैं। इसके अलावा यहां एक और अद्भुत चमत्कार होता है। कहा जाता है कि मंदिर में दो बड़े फूलदान रखे हैं जिन्हें रिखोला और पिखोला कहा जाता है। खास बात ये है कि यहां जंजीर से इन फूलदानों को बांधा गया है। इसका कारण ये है कि मान्यता के अनुसार ये फूलदान पूर्णिमा के दिन यहां से अपने आप चलते हुए नदी को जाने शुरु हो जाते हैं।

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ज्ञात हो कि खरसाली में यमनोत्री धाम भी है जो इस शनि धाम से करीब 5 किलोमीटर की दूर पर है। दरअसल यमुना नदी शनि की बहन मानी गईं है। यहां खरसाली में मौजूद शनि मंदिर में हर वर्ष एक बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में शनि देव पूरे साल विराजमान रहते हैं। इसके अतिरिक्त हर साल अक्षय तृतीया पर शनि देव अपनी बहन यमुना से यमुनोत्री धाम में मिलकर खरसाली लौटकर आते हैं।

वहीं इसके अलावा यदि मंदिर से जुड़ी कहानियों और इतिहासकारों की मानें तो इस जगह को पांडवों के समय की माना जाता है। ऐसे में यह भी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने ही करवाया था। पांच मंजिल के इस मंदिर को पत्थर और लकड़ी से बनाया गया है। इस मंदिर की खास बात ये भी है कि इस बाढ़ और भूकंप से लकड़ी की छडियों द्वारा सुरक्षित किया गया है। जिसके चलते ये मंदिर खतरे से बचा रहता है। इस मंदिर में एक संकीर्ण लकड़ी की सीढ़ी से शीर्ष मंजिल तक पहुंचा जा सकता है, जहां कांस्य की शनि महाराज का प्रतिमा मौजूद है। यहां अंदर, ये अंधेरा और धूंधली स्थिति रहती है, सूर्य यहां कभी-कभी ही छत के माध्यम से झुकता है। यहां से खरसाली का मनोरम दृश्य देखने को मिलता है।

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