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पटना

छठ के दूसरे दिन खरना करने की है परंपरा

बिहार में लोक आस्था के चार दिवसीय महापर्व छठ के शनिवार को दूसरे दिन राजधानी पटना समेत राज्य के विभिन्न इलाकों में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने पवित्र गंगा नदी समेत अन्य नदियों और तालाबों में स्नान किया।

पटनाNov 18, 2023 / 07:52 pm

Deendayal Koli

खरीदारी करते लोग।

लोक आस्था के चार दिवसीय महापर्व छठ के दूसरे दिन खरना करने की परंपरा रही है और इस दिन प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रत करने वाले छठ पूजा पूर्ण होने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करते हैं।
बिहार में लोक आस्था के चार दिवसीय महापर्व छठ के शनिवार को दूसरे दिन राजधानी पटना समेत राज्य के विभिन्न इलाकों में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने पवित्र गंगा नदी समेत अन्य नदियों और तालाबों में स्नान किया। गंगा नदी में सुबह स्नान करने के बाद व्रती समेत उनके परिवार के सदस्य गंगाजल लेकर अपने घर लौटे और पूजा की तैयारी में जुट गए हैं।
इस दिन खरना व्रत की परंपरा निभाई जाती है, जो कार्तिक शुक्ल की पंचमी तिथि होती है। छठ में खरना का अर्थ है शुद्धिकरण। यह शुद्धिकरण केवल तन न होकर बल्कि मन का भी होता है इसलिए खरना के दिन केवल रात में भोजन करके छठ के लिए तन तथा मन को व्रती शुद्ध करते हैं। खरना के बाद व्रती 36 घंटे का व्रत रखकर सप्तमी को सुबह अर्घ्य देते हैं। ऐसी मान्यता है कि खरना के दिन यदि किसी भी तरह की आवाज हो तो व्रती खाना वहीं छोड़ देते हैं। इसलिए, इस दिन लोग यह ध्‍यान रखते हैं कि व्रती के प्रसाद ग्रहण करने के समय आसपास शोर-शराबा ना हो।
शुद्ध तरीके से बनाई जाती है खीर

खरना के दिन खीर गुड़ तथा साठी का चावल इस्तेमाल कर शुद्ध तरीके से बनाई जाती है। खीर के अलावा खरना की पूजा में मूली तथा केला रखकर पूजा की जाती है। इसके अलावा प्रसाद में पूरियां, गुड़ की पूरियां तथा मिठाइयां रखकर भी भगवान को भोग लगाया जाता है। छठ मइया को भोग लगाने के बाद ही इस प्रसाद को व्रत करने वाला व्यक्ति ग्रहण करता है। खरना के दिन व्रती का यही आहार होता है। खरना के दिन बनाया जाने वाला खीर प्रसाद हमेशा नए चूल्हे पर बनता है। साथ ही इस चूल्हे की एक खास बात यह होती है कि यह मिट्टी का बना होता है। प्रसाद बनाते समय चूल्हे में इस्तेमाल की जाती है वाली लकड़ी आम की ही होती है।
शाम को करते हैं पूजा अर्चना

खरना के मौके पर व्रती पूरी निष्ठा और पवित्रता के साथ भगवान भास्कर की शाम को पूजा-अर्चना करेंगे। भगवान भास्कर को गुड़ मिश्रित खीर और घी की रोटी का भोग लगाकर स्वयं भी ग्रहण करेंगे। इसके बाद भाई-बंधु, मित्र और परिचितों में खरना का प्रसाद बांटा जाएगा। उसके बाद से उनका करीब 36 घंटे का निराहार एवं निर्जला व्रत शुरू हो जाएगा।
तीसरे दिन करेंगे अर्घ्य अर्पित

महापर्व के तीसरे दिन व्रतधारी अस्ताचलगामी सूर्य को नदी और तालाब में खड़े होकर फल एवं कंद मूल से प्रथम अर्घ्य अर्पित करते हैं। पर्व के चौथे और अंतिम दिन फिर नदियों और तालाबों में व्रतधारी उदीयमान सूर्य को दूसरा अर्घ्य देते हैं। दूसरा अर्घ्य अर्पित करने के बाद ही श्रद्धालुओं का 36 घंटे का निराहार व्रत समाप्त होता है और वे अन्न-जल ग्रहण करते हैं।
बाजारों में बढ़ी चहल पहल

प्रदेश के सभी जिलों के बड़े बाजारों में सुबह से ही चहल-पहल बढ़ गयी है। व्रत के दूसरे दिन खरना को लेकर सुबह से ही लोग दूध समेत अन्य सामानों की खरीददारी के लिए बाजारों के लिए निकल गए। दूध के साथ ही लोग अन्य सामानों जैसे चूल्हा, आटा, गुड़ समेत अन्य सामानों की खरीददारी करने में व्यस्त हैं। महापर्व छठ को लेकर राजधानी पटना समेत पूरे बिहार के घर-घर में छठ के गीत गूंज रहे हैं। ..केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मेडराय,
आदित लिहो मोर अरगिया.., दरस देखाव ए दीनानाथ.., उगी है सुरुजदेव.., हे छठी मइया तोहर महिमा अपार.., कांच ही बास के बहंगिया बहंगी लचकत जाय..,गीत सुनने को मिल रहे हैं।

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