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Rajasthan News: जानलेवा बीमारी… फिर भी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में छह माह से जांच बंद

Rajasthan News: पत्थर तराशने व खदानों से पत्थर निकालने वाले श्रमिकों के फेफड़े धूल, मिट्टी के साथ पत्थरों के सूक्ष्म कणों से छलनी हो जाते हैं। इससे जानलेवा सिलिकोसिस बीमारी हो जाती है।

पालीApr 07, 2024 / 02:58 pm

Rakesh Mishra

Rajasthan News: पत्थर तराशने व खदानों से पत्थर निकालने वाले श्रमिकों के फेफड़े धूल, मिट्टी के साथ पत्थरों के सूक्ष्म कणों से छलनी हो जाते हैं। इससे जानलेवा सिलिकोसिस बीमारी हो जाती है। इससे ग्रसित मरीजों की स्क्रीनिंग बांगड़ मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय में पिछले करीब छह माह से नहीं हो रही है। कारण है बीमारी की जांच करने वाले सभी चिकित्सकों की आईडी लॉक होना। ऐसे में दर्द सहने के बावजूद कई मरीजों ने पाली के बांगड़ चिकित्सालय आना ही बंद कर दिया है, जबकि पहले टीबी व चेस्ट विभाग में हर माह दस से बारह मरीज जांच के लिए पहुंचते थे।
जिले में 225 से अधिक मरीज
जिले में मेडिकल टीम की ओर से 225 से अधिक मरीजों को सिलिकोसिस से ग्रसित पाया गया, लेकिन आज तक सहायता 100 जनों को ही मिली है। जिसका अर्थ है 125 मरीज सहायता का इंतजार कर रहे हैं। जिले में 50 से अधिक सिलिकोसिस मरीजों के प्रार्थना पत्र रोके हुए है। जिले में 15 से अधिक मरीजों की प्राथमिक जांच शेष है। वहीं 110 से अधिक मरीजों के आवेदन रेडियोग्राफर, करीब 5 के रेडियोलॉजिस्ट व 150 मेडिकल बोर्ड के पास लम्बित है।
इतनी मिलती है सहायता
सिलिकोसिस का प्रमाण पत्र जारी होने के बाद जीवित व्यक्ति को तीन लाख रुपए और मृत्यु होने पर परिजनों को दो लाख रुपए की सहायता राशि दी जाती है। उनको अंत्योदय, बीपीएल और पालनहार योजना का लाभ भी दिया जाता है। इसके अलावा भी अन्य सहायता दी जाती है।
फर्जीवाड़ा बना आईडी लॉक का कारण
सिलिकोसिस की सहायता पाने के लिए कई लोग फर्जीवाड़ा करते थे। वे स्वयं के नाम से आवेदन करने के बाद एक्सरे कराने के लिए सिलिकोसिस से पीड़ित व्यक्ति को भेज देते। आवेदन पर फोटो भी उसी व्यक्ति या उससे मिलता हुआ लगाते। ऐसे कई मामले सामने आने के बाद जांच के लिए आइडी लॉक करना बताया जा रहा है, लेकिन इससे वास्तविक मरीजों को परेशानी हो रही है।
ऑनलाइन होता है पंजीयन
सिलिकोसिस से ग्रसित व्यक्ति ऑनलाइन ई-मित्र पर पंजीयन करवा सकते हैं। इसके बाद चिकित्सक के पास जाकर जांच करवानी होती है। प्रमाण पत्र भी ऑनलाइन ही जारी किया जाता है। इस प्रक्रिया में टीबी-चेस्ट विभाग के चिकित्सक, रेडियाग्राफर व रेडियोलॉजिस्ट के पास ऑनलाइन ही रिपोर्ट जाती है। जिसकी वे स्क्रीनिंग करते है। जो आईडी लॉक होने के कारण बांगड़ चिकित्सालय में नहीं हो रही है।
इनका कहना है
सिलिकोसिस मरीजों के लिए चिकित्सकों की आइडी खुलवाने के लिए जयपुर पत्र लिखा है। चिकित्सकों के पास ऑनलाइन ही स्क्रीनिंग के लिए आवेदन आते हैं। नए रेडियोग्राफर की आइडी के लिए भी प्रस्ताव भेजा है।
– डॉ. विकास मारवाल, सीएमएचओ, पाली
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