खास बात यह है कि इस गौ काष्ठ को तैयार करने में ज्यादा समय नहीं लगता है। गोबर से बनी लकड़ी साधारण लकड़ी की तुलना में सस्ती और कम धुआं छोड़ने वाली होगी। इससे पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं होगा। यह लकड़ी बनाने के लिए गोपाल विभाग की ओर से 600 से अधिक मवेशी वाली प्रदेश की गोशालाओं को अनुदान पर मशीन उपलब्ध करवाई जाएगी।
ऐसे बनती है गौ काष्ठ
गौ काष्ठ बनाने के लिए गोबर को मशीन में डाल दिया जाता है। इसके बाद 4 से 5 फीट लंबी लकड़ी बन कर निकल आती है। उसे सूखा दिया जाता है। एक अनुमान के मुताबिक 1 क्विंटल गोबर से 1 क्विंटल गौ काष्ठ बनाई जा सकती है। मशीनों से 1 दिन में करीब 10 क्विंटल गोबर की गौ काष्ठ बनाई जा सकती है।
इन कार्यों में हो सकता है उपयोग
गौ काष्ठ का उपयोग श्मशान में अंतिम संस्कार के लिए किया जा सकता है। इसके साथ ही होलिका दहन, यज्ञ जैसे धार्मिक आयोजनों सहित फैक्ट्री व रेस्टोरेंट आदि में किया जा सकता है। गांव में गौ काष्ठ का उपयोग कंडों की जगह खाना बनाने में किया जा सकता है। इससे ज्यादा धुआं नहीं निकलता। कई राज्यों में पहले से बन रही
राजस्थान की गोशालाओं के लिए गौ काष्ठ बनाना नया है, लेकिन देश के कई राज्यों में यह पहले से बनाई जा रही है। मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में कई किसान, पशुपालक, गोशालाएं गौ काष्ठ बना रहे है। प्रदेश में गौ काष्ठ की अनुमानित लागत करीब 8 रुपए प्रति किलोग्राम होगी।
माह में 183 क्विंटल उपयोग आती लकड़ी
पाली में आठ श्मशान है। उनमें औसत एक माह में 73 अंतिम संस्कार होते हैं। एक अंत्येष्टि में करीब 2.50 क्विंटल लकड़ी का उपयोग होता है। ऐसे में एक माह में 183 क्विंटल से अधिक लकड़ी चाहिए। जो गौ काष्ठ का उपयोग करने पर बच सकती है। इस लकड़ी के लिए जितने पेड़ काटने की आवश्यकता होती, वे भी नहीं काटने होंगे।
पाली की 27 गोशाला में 600 या उससे अधिक मवेशी है। वहां गौ काष्ठ बनाने की मशीन लगाई जा सकती है। गौ काष्ठ का उपयोग धार्मिक रूप से करने के साथ श्मशान में अंत्येष्टि के लिए और उद्योगों में भी किया जा सकता है। इससे पर्यावरण संरक्षण होगा।
- डॉ. मनोज पंवार, संयुक्त निदेशक, पशुपालन विभाग, पाली