माता-पिता चाहते थे कि मैं नौकरी करूं
अंकित ने कहा, माता-पिता चाहते थे कि मैं पढ़-लिखकर नौकरी करूं। लेकिन मेरा सपना खेलों में करियर बनाना था। 12वीं क्लास में फेल हुआ तो घरवाले काफी नाराज भी हुए। मैंने उनसे कहा कि मुझे खेलों में आगे बढ़ना है। काफी कोशिशों के बाद मैंने माता-पिता को मनाया और मुक्केबाज बनने का फैसला किया।
मुक्केबाजी नहीं दौड़ पहली पसंद थी
अंकित ने कहा कि उनकी पहली पसंद धावक बनना था। उन्होंने कहा, बारहवीं कक्षा तक मैं बॉक्सिंग के बारे में कुछ नहीं जानता था। दौड़ मेरी पहली पसंद थी। इसलिए गांव सैदपुर से कभी ऑटो में, कभी साइकिल से तो कभी दौडकऱ चिड़ावा जिम करने चले जाता था।
अर्जुन पुरस्कार विजेता मंदीप से सीखे मुक्केबाजी के गुर
मुक्केबाजी में अंकित अपने चाचाजी की वजह से आए। उन्होंने बताया, चाचाजी के माध्यम से मेरी अर्जुन पुरस्कार विजेता अंतरराष्ट्रीय बॉक्सर हरियाणा के मंदीप जांगड़ा से मुलाकात हुई। उन्होंने भाई की तरह सपोर्ट किय और बॉक्सिंंग के गुर सिखाए। राजस्थान में चयन नहीं होने पर उन्होंने मुझे ट्रेनिंग करने यूएई भेज दिया। वहां ट्रेनिंग करने के बाद मेरी प्रोफेशनल मुक्केबाज के तौर पर करियर की शुरुआत हुई।
राजस्थान में खेलों में राजनीति ज्यादा
अंकित इसस बात से काफी निराश हैं कि राजस्थान में खेलों में राजनीति ज्यादा है। उन्होंने कहा, यहां कई बार ऐसा होता है श्रेष्ठ खिलाडि़यों को आगे नहीं आने दिया जाता। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ और इसलिए मैं अब प्रोफेशनल बॉक्सिंग खेल रहा हूं।
अब नजर धाक जमाने पर
अगले महीने अंकित को फिर दुबई में डब्ल्यूडब्ल्यू जैसी अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में शिरकत करना है। उन्होंने कहा, अब मेरा सपना इस चैंपियनशिप में बेल्ट जीतने पर है। मेरी कोशिश अब प्रोफेशनल बॉक्सिंग में देश का नाम रोशन करने पर है।