खैर, इस तरह के हालात बार-बार बनने के पीछे बड़ी वजह यही है कि विभाग सिर्फ वसूली तक ही सीमित रहता है, उसमें भी औपचारिकता हावी रहती है। तभी तो गड़बड़ी करने वाले इसको गंभीरता से नहीं लेते। पिछली बार घपला सामने आया तब भी विभाग ने वसूली के लिए निर्देश जारी कर इतिश्री कर ली। आशातीत परिणाम सामने नहीं आए तो फिर एफआइआर दर्ज करवाने की घुड़की तक देनी पड़ी। इस घुड़की का जरूर असर हुआ और योजना के तहत लाभ उठाने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने बड़ी संख्या में पैसे जमा करवाए। बहरहाल, इस तरह के घपलों से तभी निबटा जा सकता है जब कार्रवाई कड़ी हो और सजा का प्रावधान भी हो। महज 27 रुपए प्रति किलो के हिसाब से वसूली करने से गड़बड़ी करने वाले बाज नहीं आने वाले। जानकार लोग इस तरह की गड़बड़ी रोकने के लिए संबंधित कर्मचारियों एवं अधिकारियों से शपथ पत्र लेने की दलील देते हैं। इसके बाद भी किसी का नाम इस तरह की योजनाओं में मिले तो उन पर एफआइआर दर्ज करवाकर कड़ी कार्रवाई हो। कहा भी गया है भय बिना प्रीत नहीं होती। इस योजना के लिए आवेदन के समय होने वाली सत्यापन प्रक्रिया को भी पारदर्शी बनाने की आवश्यकता है। (म.सिं.शे.)