निजी अस्पतालों की तरफ से ऊंचे दामों पर टीके बेचने की शिकायतें आती रही हैं, लेकिन खरीद में फर्जीवाड़े का संभवत: यह पहला मामला है और इसके सामने आने से टीका खरीद प्रक्रिया को लेकर कई नए सवाल उठ खड़े हुए हैं। पहला सवाल यही है कि आखिर ये कौन लोग हैं, जिन्होंने ऐसा करने की कोशिश की है? इसके पीछे उनकी मंशा क्या है? क्यों वे गुमनाम रहकर टीके खरीदने की कोशिश कर रहे हैं? क्या यह कालाबाजारी से जुड़े हुए लोगों का कोई नेटवर्क है? इन सवालों के जवाब अभी मध्यप्रदेश सरकार के पास भी नहीं है। उम्मीद है कि जांच के दौरान आने वाले समयमें खुलासा जरूर होगा कि यह कोशिश किसने और क्यों की। जो कोशिश मध्यप्रदेश में की गई है, दूसरे राज्यों में भी इस तरह की कोशिशों की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में सभी राज्यों का दायित्व है कि टीका आपूर्ति की प्रक्रिया को फूलप्रूफ बनाएं। तमाम केंद्रीय और राज्य स्तरीय सरकारी एजेंसियों को भी सतर्क हो जाना चाहिए और टीकाकरण कार्यक्रम में उच्च स्तरीय पारदर्शिता व बहुस्तरीय निगरानी को सुनिश्चित करना चाहिए।
भले ही केंद्र सरकार ने टीका खरीद खुद करने का ऐलान किया हो, लेकिन निजी क्षेत्र के लिए 25 फीसदी वैक्सीन खरीद का विकल्प खुला हुआ है। ऐसे में न केवल बोगस खरीद की हर कोशिश को नाकाम करना महत्त्वपूर्ण है, बल्कि गड़बड़ी करने वाले लोगों के नाम, उनके चेहरे और उनकी मंशा को सबके सामने लाया जाना चाहिए। आज जबकि देश कोरोना को हराने के लिए वैक्सीन संकट से जूझ रहा है, बोगस अस्पताल के नाम पर टीका खरीद का ऑर्डर कई आशंकाओं को जन्म दे रहा है। उम्मीद है कि राज्य सरकारें ऐसी खामियों को चिह्नित भी करेंगी और नापाक इरादे रखने वालों को बेनकाब भी करेंगी।