असल में साइकिल चलाते समय हम सामान्य की तुलना में गहरी सांसें लेते हैं और ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं। इसके कारण शरीर में रक्त संचार भी बढ़ जाता है, साथ ही फेफड़ों के अंदर तेजी से हवा अंदर और बाहर होती है। इससे फेफड़ों की क्षमता में भी सुधार होता है और फेफड़ों में मजबूती आती है। इसके चलते हृदयाघात यानी दिल के दौरे होने की संभावना कम हो जाती है। साथ ही हृदय से जुड़ी दूसरी बीमारियां होने का खतरा भी कम हो जाता है।
प्रकृति के सान्निध्य में सुबह के शांत वातावरण मे साइक्लिंग करने से मस्तिष्क में सेरोटोनिन, डोपामिन, आक्सीटोसिन, एंडोरफिन जैसे हैप्पीनेस हार्मोन रिलीज होते हैं जिससे तनाव घटता है एवं मन प्रसन्न रहता है। अमरीका एवं यूरोपीय देशों हुए शोधों में पाया गया है कि नियमित रूप से साइकिल चलाने वाले व्यक्तियों में तनाव और अवसाद दूसरों की तुलना में काफी कम होते हैं। नियमित रूप से साइक्लिंग करने वाले महसूस कर सकते हैं कि उनका शारीरिक एवं मानसिक स्टैमिना बढ़ गया है। साथ ही शरीर में नई ऊर्जा और ताकत आ गई है। जो लोग नियमित रूप से साइक्लिंग करते हंै, उनकी मांसपेशियां काफी मजबूत होती हैं।
साइक्लिंग से पैरों की मांसपेशियों (जिसे पेरिफेरल हार्ट कहा जाता है) की अच्छी एक्सरसाइज हो जाती है। इसके फलस्वरूप वेरीकोज वेंस या खून की नाडिय़ों में थक्का जमने, स्ट्रोक आदि की आशंका बहुत कम हो जाती है। साइक्लिंग के माध्यम से शरीर के सभी अंगों के बीच अच्छा समन्वय स्थापित हो जाता है। हाथ, पैर, आंखें इन सभी के बीच अच्छा समन्वय होना शरीर के संतुलन को बेहतर करता है। सवेरे के समय साइकिल चलाते समय सूर्योदय को देखने के साथ-साथ पक्षियों की चहचहाट भी सुनाई देती है। साइक्लिंग का रूट हर दिन बदला जा सकता है जिससे रोजाना नए-नए दृश्य नजर आते हैं। नित नए दृश्य दिखाई देने के कारण मस्तिष्क की संचार प्रणाली एवं कोशिकाएं अति सक्रिय रहती हैं।
नियमित रूप से साइकिल चलाने वाले व्यक्यिों की याददाशत अच्छी होती है एवं उन्हें अल्जीमर्स डिजीज, पार्किंसन डिजीज एवं डेमेन्शिया जैसी मानसिक बीमारियों का खतरा कम से कम होता है। नियमित रूप से साइक्लिंग करने से स्वास्थ्य लाभ तो होते ही हैं, साथ ही इससे पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिलता है। आइए विश्व साइकिल दिवस हम सभी सप्ताह में कम से कम एक दिन परिवार सहित साइकिल चलाते हुए कुछ घंटे प्रकृति के साथ गुजारने का संकल्प लें। इस छोटे से कदम से कई स्वास्थ्य समस्याएं आश्चर्यजनक रूप से कम हो सकती है एवं पर्यावरण संरक्षण में भी कुछ हद तक मदद मिल सकती है।
— डॉ सुरेश पाण्डेय