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पूर्वी पड़ोसी के साथ रिश्तों की नई पहल

पड़ोसी बांग्लादेश में नई सरकार का गठन हुआ है। यह भारत-बांग्लादेश संबंधों के लिए अच्छी खबर है। बांग्लादेश के नए विदेश मंत्री अपनी पहली विदेश यात्रा पर भारत आए हैं। पूर्वी पड़ोसी के साथ मजबूत राजनीतिक और आर्थिक संबंधों की दिशा में ये सार्थक पहल है। दोनों देशों को इससे फायदा होगा।

Feb 10, 2019 / 04:23 pm

dilip chaturvedi

पूर्वी पड़ोसी के साथ रिश्तों की नई पहल

प्रणय कोटस्थाने और हेमंत चांडक, नीति विश्लेषक

दिसंबर 2018 के चुनाव में जीत कर शेख हसीना एक बार फिर बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बन गई हैं। यह भारत-बांग्लादेश संबंधों के लिए अच्छी खबर है यह तो हम सब जानते हैं। लेकिन कम ही लोग यह जानते हैं कि बांग्लादेश की आर्थिक प्रगति के कारनामे ने इस रिश्ते को एक नया आयाम दिया है। कई बार हम भारत के उपमहाद्वीपीय पड़ोसियों को एक सरीखे स्तर का मानते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि बांग्लादेश भारत के लिए सिर्फ किसी एक नहीं, कई कारणों के चलते जरूरी बन गया है।

हाल ही में जारी किए गए कई आंकड़े बांग्लादेश की उपलब्धियों को दर्शाते हैं। 2017 में पहली बार बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति आय पाकिस्तान से ज्यादा दर्ज की गई और 2018 में यह रुझान जारी रहा। अब बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था का एक-तिहाई से ज्यादा हिस्सा उद्योग से आता है। इस मामले में बांग्लादेश ने भारत को भी पीछे छोड़ दिया है।

उसी तरह विश्व बैंक द्वारा जारी किए गए मानव विकास सूचकांक 2018 में बांग्लादेश ने पाकिस्तान और भारत को भी पछाड़ दिया। यह सूचकांक वर्तमान स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं का अगली पीढ़ी की उत्पादकता पर प्रभाव नापता है। साथ ही उसी संस्था द्वारा जारी किए गए राष्ट्रीय आय के आंकड़े बताते हैं कि 2018 में बांग्लादेश ‘कम आय’ श्रेणी से उठकर ‘कम-मध्यम आय’ श्रेणी में आ चुका है।

इन आंकड़ों को जमीनी तौर पर महसूस किया जा सकता है। बांग्लादेश की संसद में करीब दोगुना महिलाएं है भारत के मुकाबले रोजगार में भी महिलाओं की भागीदारी भारत के मुकाबले कुछ 20 प्रतिशत ज्यादा है। बांग्लादेशी महिलाएं भारतीय महिलाएं के मुकाबले औसतन ज्यादा वेतन कमाती है और उस पैसे के उपयोग में ज्यादा निर्णायक भूमिका निभाती है। बांग्लादेश की साक्षरता दर भी भारत से ऊपर है। वहां ज्यादा घरों में शौचालय हैं। कपड़ा व्यापार और निर्यात में भी बांग्लादेश ने गत वर्षों में भारत से बाजी मार ली है। रोहिंग्या शरणार्थियों के प्रति भी बांग्लादेश ने अनुकरणीय व्यवहार का पालन किया जबकि म्यांमार के कई दक्षिण-पूर्वी पड़ोसियों ने इस संकट को नजरअंदाज कर दिया। हमारी सोच में इस मानवीय सेवा के लिए बांग्लादेश सरकार नोबेल शांति पुरस्कार का हकदार है।

इन सकारात्मक बदलावों का भारत पर असर दिखना शुरू हो चुका है। वर्ष 2018 में बांग्लादेश, भारत में निर्मित दुपहिया वाहनों के सबसे बड़े निर्यात बाजार के रूप में उभरा। क्योंकि बांग्लादेश की आबादी 16 करोड़ से ज्यादा है, वहां होने वाली आर्थिक वृद्धि का भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था पर भी सीधा असर पड़ता है। इस एक पहलू में बांग्लादेश, भारत के दूसरे दक्षिण एशियाई देशों से हटकर है। पाकिस्तान भौगोलिक रूप से बड़ा देश है, लेकिन उसकी ओर से भारत के साथ अच्छे रिश्ते रखने में उसे कोई दिलचस्पी नहीं। अन्य देशों की औसतन आय बांग्लादेश से ज्यादा है, लेकिन वे इतने छोटे हैं कि उनका भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव कम ही रहता है।

यह ताजा आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि हमारी बांग्लादेश पर समझ इतिहास की बेडिय़ों में कैद है। बांग्लादेश के प्रति भारतीयों की एक संकुचित सोच रही है कि वह एक ऐसा गरीब देश है, जहां से कई व्यक्ति भारत में घुसपैठ करने पर आमादा हैं। भारतीय राजनीतिक दल अपनी चुनावी रोटियां सेकने के लिए इस धारणा को चेताते रहते हैं। इस बात में सच्चाई तो है कि बांग्लादेश से गैरकानूनी घुसपैठ हुई है, लेकिन बांग्लादेश का आर्थिक विकास इस प्रवाह को रोकने का एकमात्र दीर्घकालीन उपाय है। खुशी की बात यह है कि बांग्लादेश सही दिशा में अग्रसर है।

पिछले कुछ वर्षों में कुछ अच्छे द्विपक्षीय नतीजे सामने आए हैं। 2014 में समुद्री सीमा का पारस्परिक समाधान और 2015 में भूमि सीमा समझौता द्ग यह दोनों जबरदस्त सफलताएं रहीं। आतंकवाद रोकने पर सहयोग भी बढ़ता रहा। हालांकि रोहिंग्या संकट के दौरान भारत का रवैया कुछ फीका रहा। बांग्लादेश में आज भी 6 लाख से ज्यादा रोहिंग्या शरणार्थी हैं। मानवीय आधार पर ताबड़तोड़ राहत पहुंचाने के लिए भारत ने ‘ऑपरेशन इंसानियत’ शुरू तो किया था, लेकिन इस संकट के बीच में ही भारत के 40,000 रोहिंग्या शरणार्थियों को निकाल बाहर करने की बात को तूल देकर सारी मेहनत पर पानी फेर दिया।

आगे जाकर आर्थिक सहयोग और व्यापार के अलावा, बांग्लादेश भारत को अपने उत्तर-पूर्वी भाग से सदृश रूप से जोडऩे में अहम भूमिका अदा कर सकता है। कोलकाता से अगरतला तक बांग्लादेश से गुजरते हुए एक ‘ट्रांसिट कॉरिडोरÓ बनाया तो गया है पर बांग्लादेश की तरफ से महंगी वीसा फीस के चलते यह मार्ग लोकप्रिय नहीं हुआ है। बांग्लादेश के चटगांव और मोंगला बंदरगाहों को उपयोग में लाने की सहमति से भी उत्तर-पूर्व भारत को बहुत फायदा होगा। दूसरी ओर बांग्लादेश की तरफ से एक ही बड़ी मांग रही है द्ग तीस्ता मसले को जल्द निपटाना। इन मामलों पर समाधान दोनों देशों के लिए लाभदायक होगा।

ग़ौरतलब है कि बांग्लादेश की सरकार के नए विदेश मंत्री अब्दुल मोमिन अपने पहले विदेशी दौरे पर भारत आए हैं। उनके साथ व्यापार और निवेश, सुरक्षा सहयोग, व्यापक एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली, रक्षा, ऊर्जा जैसे अनेक मुद्दों पर चर्चा हुई। आने वाले समय के लिए उम्मीद है कि बदलते समीकरणों को देख भारत में बांग्लादेश को देखने का नज़रिया बदलेगा, हम उस देश से प्रेरणा लेंगे और हम उनकी उभरती अर्थव्यवस्था में भारत के कई हिस्सों को भी भागीदार बना पाएंगे। अगले कुछ सालों के लिए भारतीय उपमहाद्वीप में बांग्लादेश भारत के लिए सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए। ये दोनों की देशों के लिए बेहतर कदम साबित होगा।

(लेखक, तक्षशिला संस्थान, बेंगलूरु में भू-राजनीति, लोक नीति, अर्थशास्त्र और शहरी मामलों पर शोधरत।)

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