प्रो. कैलाश सोडाणीकुलपति, वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालयएक समाज के सुचारू रूप से कार्य करने के लिए, अधिकारों और कर्तव्यों के बीच एक नाजुक संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। यह संतुलन व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच एक सामंजस्यपूर्ण संबंध सुनिश्चित करता है। अधिकार व्यक्ति को सशक्त बनाते हैं, जबकि कर्तव्य उन्हें समाज के प्रति […]
प्रो. कैलाश सोडाणी
कुलपति, वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय
एक समाज के सुचारू रूप से कार्य करने के लिए, अधिकारों और कर्तव्यों के बीच एक नाजुक संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। यह संतुलन व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच एक सामंजस्यपूर्ण संबंध सुनिश्चित करता है। अधिकार व्यक्ति को सशक्त बनाते हैं, जबकि कर्तव्य उन्हें समाज के प्रति जवाबदेह बनाते हैं। भारतीय संविधान विश्व के सबसे व्यापक संविधानों में से एक है जो न केवल अपने नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान करता है, बल्कि उन पर कुछ मौलिक कर्तव्यों का पालन करने की भी अपेक्षा रखता है। यह अधिकारों और कर्तव्यों का संतुलन भारतीय लोकतंत्र की नींव है और यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता राष्ट्रीय हित के साथ सामंजस्य में रहे। अधिकार और कर्तव्य परस्पर जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार व्यक्तियों को अपने विचारों को व्यक्त करने की अनुमति देता है, लेकिन यह कर्तव्य भी है कि वे ऐसा सम्मानजनक तरीके से करें। यहां यह कहना न्यायसंगत होगा कि अधिकारों के साथ ही साथ कर्तव्यों के प्रति संकल्प भी आवश्यक है।
अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। आज के गतिशील और परिवर्तनशील युग में हमारे अधिकारों की रक्षा और भविष्य को सुरक्षित करना सर्वोपरि है। अधिकार हमें सम्मान और गरिमा के साथ जीने का अवसर देते हैं। वे हमें स्वतंत्र रूप से सोचने, अभिव्यक्त करने और कार्य करने की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं। साथ ही ये सभी के लिए समान अवसर और न्याय सुनिश्चित करते हैं। अधिकार हमें शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार के अवसरों तक पहुंच प्रदान करके व्यक्तिगत और सामाजिक विकास को बढ़ावा देते हैं। समाज में अभी भी भेदभाव और असमानताएं व्याप्त हैं, जो हमारे अधिकारों के पूर्ण आनंद में बाधा डालती हैं। हिंसा और संघर्ष हमारे अधिकारों के लिए खतरा पैदा करते हैं, विशेष रूप से कमजोर समूहों के लिए। आज के युग में तकनीकी प्रगति के साथ, डिजिटल विभाजन और गोपनीयता के मुद्दे हमारे अधिकारों के लिए नई चुनौतियां पैदा कर रहे हैं। इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अपने अधिकारों के बारे में शिक्षित और जागरूक होना खुद को सुरक्षित रखने का पहला कदम है। हमारे अधिकार हमारे भविष्य की नींव हैं। उन्हें सुरक्षित रखने के लिए हमें जागरूक, सक्रिय और एकजुट होना होगा। केवल तभी हम एक ऐसा भविष्य बना सकते हैं, जहां सभी के अधिकारों का सम्मान हो और सभी को विकास और प्रगति के समान अवसर प्राप्त हों।
हम सभी जानते है कि शिक्षा बच्चों के संज्ञानात्मक, सामाजिक, भावनात्मक और शारीरिक विकास का आधार है। यह उन्हें अपने आसपास की दुनिया को समझने, महत्त्वपूर्ण सोच व कौशल विकसित करने और उचित निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करती है। साथ ही साथ शिक्षा सशक्तीकरण का माध्यम भी है। शिक्षा बच्चों, विशेषकर लड़कियों और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के बच्चों को सशक्त बनाने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम है। यह उन्हें अपने अधिकारों के बारे में जागरूक करती है, आत्मविश्वास बढ़ाती है और उन्हें अपने जीवन के बारे में निर्णय लेने में सक्षम बनाती है। इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि शिक्षा ही सामाजिक और आर्थिक विकास का इंजन है। यह गरीबी को कम करने, स्वास्थ्य में सुधार, लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और समावेशी समाज के निर्माण में मदद करती है। आज सभी शिक्षाविद् प्रयास कर रहे हैं कि बच्चों को तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य में प्रतिस्पर्धा करने और सफल होने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल प्रदान कर सकें। इसमें कोई संशय नहीं है कि मानवाधिकार शिक्षा इन प्रयासों को रूपांतरित करने में कारगर सिद्ध हो सकती है। चूंकि मानवाधिकार शिक्षा केवल कानूनों और सिद्धांतों को याद करने के बारे में नहीं है। यह सम्मान, समानता, और न्याय के मूल्यों को समझने और उन्हें आत्मसात करने के बारे में है।
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