मनोचिकित्सक, सुसाइड प्रिवेंशन पॉलिसी के लिए प्रयासरत
मानसिक तनाव का एक बड़ा कारण वर्क-लाइफ बैलेंस की कमी है। अत्यधिक काम का दबाव युवाओं को अपने व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन से दूर कर रहा है। कामकाज के घंटों का बढ़ता दबाव और परिवार व सामाजिक गतिविधियों के लिए समय की कमी, युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही है। कई कंपनियां अपने कर्मचारियों से लंबे घंटों तक काम करने की अपेक्षा करती हैं और मानसिक विश्राम के लिए पर्याप्त समय नहीं देतीं। कार्यस्थल का दबाव मानसिक थकान और अवसाद का कारण बन जाता है। मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के बारे में खुलकर बात नहीं कर पाने की सामाजिक परिपाटी इस स्थिति को और जटिल बना देती है। मानसिक बीमारियों से जुड़े कलंक और उनके समाधान के प्रति लोगों की उदासीनता से समस्या गंभीर रूप ले लेती है।
हाल के दिनों में युवाओं में कामकाज के दबाव के चलते मौत और आत्महत्या की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। असल में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का समय पर समाधान नहीं हो पाता। अक्सर, युवाओं को यह महसूस होता है कि वे अपनी समस्याओं से अकेले जूझ रहे हैं और उनका कोई मददगार नहीं है। मानसिक तनाव के इस दौर में, आत्महत्या को वे अपनी समस्याओं से छुटकारा पाने का अंतिम उपाय समझने लगते हैं। वर्क-लाइफ बैलेंस को बनाए रखना और मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना ही इस समस्या का समाधान हो सकता है। समाज, परिवार और कंपनियों को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा ताकि युवा वर्ग सुरक्षित रहे। काम जरूरी है, लेकिन इसके कारण किसी की जान ही चली जाए तो ऐसे काम का क्या फायदा?
मानसिक तनाव का एक बड़ा कारण वर्क-लाइफ बैलेंस की कमी है। अत्यधिक काम का दबाव युवाओं को अपने व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन से दूर कर रहा है। कामकाज के घंटों का बढ़ता दबाव और परिवार व सामाजिक गतिविधियों के लिए समय की कमी, युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही है। कई कंपनियां अपने कर्मचारियों से लंबे घंटों तक काम करने की अपेक्षा करती हैं और मानसिक विश्राम के लिए पर्याप्त समय नहीं देतीं। कार्यस्थल का दबाव मानसिक थकान और अवसाद का कारण बन जाता है। मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के बारे में खुलकर बात नहीं कर पाने की सामाजिक परिपाटी इस स्थिति को और जटिल बना देती है। मानसिक बीमारियों से जुड़े कलंक और उनके समाधान के प्रति लोगों की उदासीनता से समस्या गंभीर रूप ले लेती है।
हाल के दिनों में युवाओं में कामकाज के दबाव के चलते मौत और आत्महत्या की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। असल में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का समय पर समाधान नहीं हो पाता। अक्सर, युवाओं को यह महसूस होता है कि वे अपनी समस्याओं से अकेले जूझ रहे हैं और उनका कोई मददगार नहीं है। मानसिक तनाव के इस दौर में, आत्महत्या को वे अपनी समस्याओं से छुटकारा पाने का अंतिम उपाय समझने लगते हैं। वर्क-लाइफ बैलेंस को बनाए रखना और मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना ही इस समस्या का समाधान हो सकता है। समाज, परिवार और कंपनियों को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा ताकि युवा वर्ग सुरक्षित रहे। काम जरूरी है, लेकिन इसके कारण किसी की जान ही चली जाए तो ऐसे काम का क्या फायदा?