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शिक्षा व प्रशिक्षण से रोजगार तक समर्थन

दरअसल, भारत को बड़े पैमाने पर मानव पूंजी में निवेश की जरूरत है ताकि दीर्घकालिक, टिकाऊ और समावेशी विकास सुनिश्चित किया जा सके। उस निवेश को सकल घरेलू उत्पाद के 6 प्रतिशत के बेंचमार्क तक पहुंचाने की जरूरत है, जबकि फिलहाल यह इसका आधा ही है। यह निवेश निजी और सार्वजनिक दोनों स्रोतों से आ सकेगा।

जयपुरJul 25, 2024 / 11:08 pm

Nitin Kumar

अजीत रानाडे
लेखक वरिष्ठ अर्थशास्त्री हैं
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली तीसरी सरकार के पहले बजट ने मोदी 3.0 की आर्थिक नीतियों की रूपरेखा तैयार कर दी है, जिसे एनडीए सहयोगियों की मंजूरी की भी जरूरत होगी। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण का यह रेकॉर्ड सातवां बजट था, भले ही बजट प्रस्ताव छह महीने के लिए लागू होंगे। अगले साल नए बजट से पहले, ये प्रस्ताव सरकार की आर्थिक दृष्टि को सुस्पष्ट करते हैं। स्पष्टतया: रोजगार सृजन, कौशल और प्रशिक्षण, युवाओं के लिए प्रशिक्षण और छोटे व्यवसायों को प्रोत्साहित करने पर जोर दिया गया है। बजट प्रस्तावों में ऊर्जा चुनौती का भी उल्लेख है क्योंकि अब वक्त कोयला और जीवाश्म ईंधन से हरित और टिकाऊ ऊर्जा स्रोतों की ओर जाने का है। इसलिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के साथ परमाणु ऊर्जा का उल्लेख किया जाना महत्त्वपूर्ण है।
वित्तीय वर्ष 2024-25 के आम बजट प्रस्तावों का मुख्य जोर या उद्देश्य रोजगार सृजन पर और छोटे व्यवसायों की मदद पर है। रोजगार सृजन आजीविका और कौशल प्रोत्साहन के माध्यम से किया जाना है जबकि छोटे व्यवसायों की मदद एमएसएमई को किसी भी संपाश्र्विक प्रतिभूति (कोलेटरल) के बिना और निर्यात बाजारों तक पहुंच को सक्षम बनाकर की जानी है। कैपिटल गेन पर भी टैक्स में बढ़ोतरी हुई है। कुछ अर्थों में, इस बजट को श्रम-श्रम-केंद्रित विकास की एक धुरी भी कहा जा सकता है जिसमें मानव पूंजी में बढ़ोतरी और सुधार शामिल है। सरकार ने अब रोजगार सृजन और रोजगार सृजन के लिए प्रोत्साहन पर ध्यान केंद्रित किया है बनिस्पत उत्पादन और राजस्व को प्रोत्साहन देने के। मानव पूंजी में निवेश के लिए प्राथमिक शिक्षा और आंशिक रूप से माध्यमिक शिक्षा को सार्वजनिक धन से वित्तपोषण जरूरी है क्योंकि इसके सामाजिक लाभ बेहद व्यापक हैं। लेकिन, कॉलेज शिक्षा और कौशल व प्रशिक्षण सहित आगे की शिक्षा को करदाताओं द्वारा वित्तपोषित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि उच्च शिक्षा और कौशल का लाभ मुख्य रूप से व्यक्ति को मिलता है और समाज को केवल गौण रूप से। कौशल और कॉलेज की डिग्री और डिप्लोमा के अतिरिक्त लाभ उद्यमिता, नवाचार और रोजगार सृजन के संदर्भ में हैं, पर तब भी इसे मुफ्त प्रदान करने का कोई मजबूत औचित्य नहीं है। भारत को कौशल प्रदान करने के लिए मुख्य चुनौती यह है कि प्रशिक्षित होने के लिए उत्सुक अधिकांश युवा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की वास्तविक लागत वहन नहीं कर सकते हैं। अधिकांश कौशल प्रशिक्षण ऑन-द-जॉब लर्निंग के रूप में होता है। इसलिए सबसे अच्छा तरीका है कि नेशनल अप्रैन्टिसशिप प्रोग्राम में इसे शामिल किया जाए। शीर्ष स्तरीय कंपनियों में १ करोड़ युवाओं के लिए इंटर्नशिप भी करते हुए सीखने की दिशा में एक अहम कदम होगा। कौशल और उच्च शिक्षा के लिए शुल्क छात्र यानी प्राथमिक लाभार्थी को ही वहन करना चाहिए। यह बजट छात्र ऋण तक आसान और सस्ती पहुंच सुनिश्चित करने के लिए अच्छा काम करता है। आने वाले वर्षों में भारत में उच्च शिक्षा के वित्तपोषण का यह प्रमुख तरीका होना चाहिए। एमएसएमई का उद्योग, निर्यात और रोजगार में बड़ा हिस्सा है, इस पर फोकस भी स्वागतयोग्य है।
घाटे को कम करने के लिए रिजर्व बैंक से मिले राजकोषीय लाभ के आधे हिस्से का ही उपयोग राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के प्रति प्रतिबद्धता दर्शाता है। भारत को आयकर रणनीति पर व्यापक पुनर्विचार की जरूरत है। प्रत्यक्ष कर का दायरा व्यापक करने की जरूरत है, स्लैब शून्य से लेकर शीर्ष दर तक कुछ लाख रुपए के दायरे में न हों। शीर्ष स्तर उच्च आय पर लागू होना चाहिए, जैसे कि 1 करोड़ से अधिक। पर छूट खत्म होनी चाहिए। जैसा कि वित्त मंत्री ने कहा, कर सुधारों के लिए नया व्यापक आर्थिक ढांचा आने वाला है। उम्मीद की जानी चाहिए कि नए ढांचे में वैश्विक मूल्य शृंखलाओं का दोहन करने के लिए भारत लाभप्रद स्थिति में होगा। इसलिए सभी क्षेत्रों में आयात शुल्क कम करने की प्रवृत्ति होनी चाहिए। कैपिटल गेन्स पर कर की उच्चतर दर का अस्थायी असर पड़ सकता है, पर लचीलेपन और मध्यम मुद्रास्फीति के साथ उच्च वृद्धि के कारण दुनिया में भारत की अलग छवि है। रोजगार सृजन व कौशल को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों और राजकोषीय समेकन के साथ कोई कारण नहीं है कि उच्च विकास को बरकरार नहीं रखा जा सकता है। देर-सबेर वित्तीय बाजार भारत की इस ताकत को मानेंगे।
(द बिलियन प्रेस)

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