इसके साथ ही तय हो गया है कि कूनो के बाद भारत में बन्नी में ही देश और दुनिया चीतों को दौड़ते हुए देखेगी। यह देश में चीतों की पुनर्वास योजना की सफलता की दिशा में अहम कदम है। इसकी जरूरत इस दृष्टि से बहुत अहम है कि कूनो ने पिछले सवा साल में काफी विषम अनुभव झेले हैं। अफ्रीका से मिले 20 में से 6 चीते और यहां जन्मे चार में से तीन शावकों की मृत्यु के बाद काफी शंकाएं पैदा हो गई थीं। हालांकि विशेषज्ञ शुरुआती सालों में इतनी मौतों को स्वाभाविक करार दे रहे थे, लेकिन सच यह है कि हौसला हर स्तर पर डिग रहा था। कूनो में हालात संभाले गए हैं और जुलाई के बाद से वहां किसी तरह की बुरी खबर नहीं है, लेकिन आगे भी किसी तरह की प्रतिकूल परिस्थिति नहीं रहे, इसके लिए वैकल्पिक स्थान विकसित करना जरूरी माना जा रहा था। सुप्रीम कोर्ट भी विशेषज्ञों की राय के आधार पर ऐसे स्थान जल्दी तैयार करने के लिए कह रहा था, ताकि किसी आपदा की स्थिति में चीतों को दूसरी जगह स्थानांतरित कर उनकी जान बचाई जा सके। कूनो में स्थितियां फिलहाल अनुकूल बनी हुई हैं, इसलिए वहां से किसी चीते को स्थानांतरित करने की जरूरत नहीं होगी। लेकिन आने वाले कुछ सालों में अफ्रीकी देशों से बड़ी संख्या में जो चीते लाए जाने हैं, उनके लिए बन्नी बहुत कारगर रहेगा। बन्नी देश में चीतों का दूसरा घर बनेगा।
बन्नी कभी तेंदुओं की बस्ती के तौर पर भी देखा जाता था। अस्सी साल पहले तेंदुए वहां से विलुप्त हो गए। चीतों के मामले में ऐसा कुछ नहीं सुनने को मिलेगा, हर देशवासी यही चाहेगा। उन्हें कामयाबी के साथ यहां बसाने में अधिकारियों ने उस अनुभव के सबक भी क्रियान्वित किए होंगे, ऐसी उम्मीद की जा सकती है। मध्यप्रदेश के ही गांधीसागर, नौरादेही और राजस्थान के मुकंदरा अभयारण्य में भी तैयारियों को गति देनी होगी, ताकि वहां भी जल्दी से जल्दी चीते लाकर बसाने की योजना को मूर्तरूप दिया जा सके और देशभर में चीतों के सफलतम पुनर्वास की कहानी भारत को गौरवान्वित कर सके।