बताते चलें कि प्रजनन दर से आशय किसी देश में रहने वाली महिलाओं (15 से 49 वर्ष) के जीवनकाल में पैदा होने वाले जीवित बच्चों की औसत संख्या से है तो प्रतिस्थापन दर एक महत्त्वपूर्ण जनसांख्यिकीय संकेतक है जिसका इस्तेमाल जनसंख्या रुझान और भविष्य की सामाजिक और आर्थिक जरूरतों के मद्देनजर योजना बनाने के लिए किया जा सकता है। इसका सीधा मतलब यह है कि 2021 के बाद से भारत नए जन्मों और मौतों के आंकड़ों के साथ संतुलन नहीं बैठा पा रहा है और भारत की आबादी में वृद्ध व्यक्तियों का अनुपात धीरे-धीरे बढ़ रहा है।
श्रमबल में ज्यादा लोगों की मौजूदगी और कम बच्चों का होना, भारत के उच्च आर्थिक विकास के लिए अवसरों की खिड़की है। इस लाभांश का भरपूर लाभ मिले, इसके लिए जरूरी है कि युवा वर्ग को आर्थिक गतिविधियों में शामिल करने के लिए ज्यादा अवसरों का विस्तार किया जाए जो सामाजिक और आर्थिक निवेश एवं नीतियों के माध्यम से स्वास्थ्य, शिक्षा, शासन और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में मार्गदर्शक का काम करे। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट की इंडिया इम्पलॉयमेंट रिपोर्ट-2024 के अनुसार श्रमबल में कामकाजी आयु की आबादी के प्रतिशत (एलएफपीआर) और जनसंख्या में नियोजित लोगों के प्रतिशत (डब्ल्यूपीआर) में सुधार देखा गया जो 2019 में 50.2 प्रतिशत ंव 47. 3 प्रतिशत की तुलना में 2022 में 55.2 प्रतिशत और 52.9 प्रतिशत हो गया है। दोनों आंकड़ों में तीन साल में लगभग 5 फीसदी की स्पष्ट वृद्धि। बेरोजगारी दर में भी कमी आई है जो 2019 में 5.8 प्रतिशत थी, वह 2022 में घटकर 4.9 प्रतिशत पर रही।
यदि सरकार नई ढांचागत परियोजनाएं शुरू करना चाहती है तो उसे श्रम, निर्माण, सेवाओं, कृषि उत्पादन कार्य से प्राप्त लाभ और प्रौद्योगिकी के सहारे की जरूरत होगी। इससे रोजगार के नए अवसर उत्पन्न होंगे। सरकार की ज्यादातर नई पहलों का उद्देश्य आने वाले दिनों में रोजगार के नए अवसर पैदा करना है। समावेशी विकास के दृष्टिकोण पर आधारित एक बड़ी पहल संकल्प है जिसका लक्ष्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अगले पांच वर्षों में कम आय वाले व्यक्तियों के लिए अतिरिक्त तीन करोड़ नए घर बनाना है। जब हम इन घरों के निर्माण के सिलसिले में रोजगार निर्माण की गणना करते हैं तो पाते हैं हर घर का औसतन आकार 25 मीटर है।
एक अनुमान के अनुसार हर घर के निर्माण और फिनिशिंग कार्य में लगभग तीन माह लगेंगे और हर घर के निर्माण में औसतन चार लोगों की जरूरत होगी। यानी प्रत्यक्ष रूप से अगले पांच वर्षों में लगभग 1,080 करोड़ श्रम दिवस का सृजन होगा। इससे अधिक तो यह कि इन तीन करोड़ घरों के निर्माण से विविध क्षेत्रों में लगभग 400 करोड़ श्रम-दिवसों का अतिरिक्त सृजन होगा। घरों के निर्माण से सीमेंट उत्पादन, ईंट निर्माण, लोहा और स्टील विनिर्माण संयंत्र, बिजली उपकरणों जैसे स्विच, सॉकेट, होल्डर आदि की फिटिंग, नल की फिटिंग, पेंट आदि क्षेत्रों में कार्यरत लोगों को रोजगार मिलेगा। कच्चा माल और अन्य सजावटी सामग्रियों की भी मांग होगी।
ऐसे में, अगले पांच सालों में तीन करोड़ नए घरों के निर्माण से कुल लगभग 1,480 करोड़ श्रम दिवस के रूप में नए प्रत्यक्ष रोजगार का सृजन किया जाएगा। इस तरह, केवल इसी नवाचार के जरिए अगले पांच सालों में लगभग 1.2 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा। अगर हम अन्य नवाचारों को शामिल करते हैं तो नए रोजगारों के सृजन की संख्या और भी ज्यादा होगी। वर्ष 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य हासिल करने और अगले पांच वर्षों में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए हमें तकनीकी कौशल, नौकरियों की गुणवत्ता में सुधार करने के साथ ही बेहतर वेतन सुनिश्चित करने को प्राथमिकता देनी होगी।
— प्रो.गौरव वल्लभ