दोनों देशों के बीच बनी सहमति इसलिए भी अहम है क्योंकि परियोजना हथियाने के लिए चीन बांग्लादेश पर डोरे डाल रहा था। चीन का इरादा ‘चिकन नेक’ नाम के सिलिगुड़ी गलियारे के पास इस नदी पर विशाल जलाशय बनाने का था। वह परियोजना की आड़ में भारत के सीमावर्ती इलाकों में अपना जाल फैलाना चाहता था। परियोजना पर भारत और बांग्लादेश की सहमति ने उसके इरादों पर तुषारापात कर दिया है। दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी नदियों में से एक तीस्ता का उद्गम स्थल सिक्किम है। सिक्किम और पश्चिम बंगाल से बहती हुई यह बांग्लादेश पहुंचकर ब्रह्मपुत्र में मिल जाती है। सिक्किम और पश्चिम बंगाल के हित भी इस नदी से जुड़े हैं। यह सिक्किम के लगभग समूचे मैदानी इलाकों को कवर करती है। वहां के लाखों लोगों के लिए रोजगार का जरिया है। सिक्किम के लिए तीस्ता का महत्त्व इस राज्य के राजकीय गीत ‘जहां बागचा तीस्ता रंगीत’ (जहां तीस्ता और रंगीत नदी बहती हैं) से समझा जा सकता है। पश्चिम बंगाल के छह जिलों में तीस्ता की धारा को जीवन-रेखा माना जाता है। तीस्ता के पानी को लेकर विवाद 1971 में बांग्लादेश बनने से पहले से चल रहा है। बांग्लादेश बनने के 12 साल बाद 1983 में समझौता हुआ था कि तीस्ता के पानी का 36 फीसदी हिस्सा बांग्लादेश, जबकि 64 फीसदी भारत इस्तेमाल करेगा। बांग्लादेश इस समझौते पर पुनर्विचार की मांग उठाता रहा है।
नए सिरे से समझौते की भूमिका 2011 में बनी थी पर पश्चिम बंगाल के विरोध के कारण समझौता नहीं हो सका। तीस्ता जल प्रबंधन परियोजना में भारत को सहयोगी बनाकर बांग्लादेश ने लचीले रुख के संकेत दिए हैं। यह रुख कायम रहा तो तीस्ता के पानी के बंटवारे की नई पटकथा लिखी जा सकती है। सरकार को सिक्किम और पश्चिम बंगाल को भरोसे में लेना होगा। बांग्लादेश से तीस्ता पर जल संधि में दोनों राज्यों के हितों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए।