अमानक पाई गई दवाइयों के ये मामले तो तब आए हैं जब पहले से ही दवाओं की गुणवत्ता तय करने के लिए कई सख्त प्रक्रियाएं होती हैं। इनमें कच्चे माल की जांच और निर्माण प्रक्रिया का निरीक्षण तक शामिल होता है। इसके बावजूद नामी दवा निर्माता कंपनियों के उत्पाद भी मानकों पर खरे नहीं उतरें तो यह माना जाना चाहिए कि कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में ये कंपनियां नैतिकता को ताक पर रखने लगी है। यह कोई पहला मौका नहीं है जब दवाइयां गुणवत्ता के पैमानों पर खरी नहीं उतरी हैं। अमानक घोषित होने वाली इन दवाइयों की बिक्री व स्टॉक रखने पर रोक केपरम्परागत आदेश भी जारी हो जाएंगे, लेकिन जिन मरीजों ने भरोसा कर इन दवाइयों का सेवन किया उन्हें कोई साइड इफेक्ट का सामना तो नहीं करना पड़ा, इस बात की जांच की कहीं कोई व्यवस्था है ही नहीं। चिंता यह भी कि यदि रैंडम सैम्पलिंंग में ये दवाइयां पकड़ी नहीं जाएं तो इनकी खुलेआम बिक्री लोगों की सेहत पर खतरा बन कर मंडराती रहती हैं। एक तरफ केन्द्रीय औषधि नियंत्रण संगठन ने दवाओं की सुगम आपूर्ति के लिए अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, कनाडा व यूरोपीय संघ के कुछ चुनिंदा देशों से आयातित दवाओं को नियमित नमूना परीक्षण से छूट दी है, वहीं देश के बाजारों में पहुंची दवा निर्माता कंपनियों की दवाओं में मिलने वाली यह खोट हमारी छवि पर विपरीत असर डालने वाली है।
अमानक दवाइयों को बाजार तक पहुंचने देने के लिए जिम्मेदारों पर सख्ती होनी ही चाहिए। चिंता यह भी कि नामी कंपनियों की ब्रांड वाली नकली दवाइयां भी बाजार में कम नहीं हैं। ताजा मामले में भी पांच दवा कंपनियों का कहना है कि बाजार में उनके ब्रांड के नाम से नकली दवाइयां बेची जा रही हैं। दवा परीक्षण में किसी भी स्तर पर लापरवाही अक्षम्य ही है क्योंकि दवा कारोबार में हेराफेरी का खेल लोगों की जान का दुश्मन बन सकता है।