आलेख प्रकृति और मानव जीवन को समावेशित करते हुए यथार्थ को प्रदर्शित करने वाला है। यह प्रदर्शित करता है कि हर प्राणी की प्राकृतिक गति होती है। लेख यथार्थ से परिपूर्ण है। प्राकृतिक विज्ञान और यथार्थ दोनों को पूरक लेते हुए एक-एक शब्द लेखक के सूक्ष्म ज्ञान एवं उनके विषय पर कितनी पकड़ है, इसको प्रदर्शित करता है।
सुनील श्रीवास्तव, भोपाल
सुनील श्रीवास्तव, भोपाल
पुरानी कहावत है जैसा रहेगा अन्न, वैसा होगा मन…जो आज भी चरितार्थ है। सात्विक भोजन करने वाला जितना शांत और शांतिप्रिय मिलेगा, उसकी अपेक्षा मांसाहार करने वाला उग्र और हुड़दंगी होगा। बस इसी से अंतर देखा जा सकता है। अन्न में भी दूषिता समाहित होने लगी है। लगातार हो रहे रसायनों के उपयोग से यह विषैला हो गया है, जो शरीर के अंदर आने पर उसे भी अपने जैसा बनाने लगा है। हमें एक बार फिर अपने पुराने वैभव और प्राकृतिक संसाधनों से अन्न उपजाने की तकनीकों को अपनाना होगा। समय के अनुसार उन्हें और उन्नत किया जा सकता है, ताकि आने वाली पीढिय़ों स्वस्थ जीवनशैली दी जा सके।
पं. योगेन्द्र त्रिपाठी, जबलपुर
पं. योगेन्द्र त्रिपाठी, जबलपुर
आलेख में सच ही लिखा है कि मनुष्य जीवन से मृत्यु तक हर समय बदलता रहता है। परिवर्तन ही जीवन का नियम है और व्यक्ति को समाज के अनुसार बनने में अपने स्वभाव तथा स्वयं को परिवर्तित करना पड़ता है।
अशोक कुमार पाल, अनूपपुर
अशोक कुमार पाल, अनूपपुर
जैसे मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक बदलता रहता है, वैसे ही पेड़ पौधों में भी बदलाव आता है। गुलाब कोठारी ने मनुष्य शरीर में विज्ञान के माध्यम से होने वाले परिवर्तन व आयुर्वेद के महत्त्व से अच्छा रूबरू करवाया है।
रवि जैन, ज्योतिषाचार्य, रतलाम
रवि जैन, ज्योतिषाचार्य, रतलाम
‘गति ही देह का संचालक’ लेख लोगों को सेहत के प्रति जागरूक करने वाला है। सही कहा है कि जब तक देह गतिमान है, तब तक स्वस्थ रहेंगे। पाचन तंत्र सही रहे तो शरीर भी स्वस्थ रहता है। उपवास और सात्विक भोजन ही पाचन तंत्र को तंदुरुस्त रखते हैं। शरीर में रोग के कारण अन्न ही हैं। इसलिए हमें अपने खान-पान का ध्यान रखना चाहिए।
दुर्गेश यादव, मंडला
दुर्गेश यादव, मंडला