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बाजार का नया अध्याय लिखने को तैयार ऑनलाइन बिजनेस कम्पनियां

भारत के आइपीओ सफर के महत्त्वपूर्ण पड़ाव, जोमैटो की शेयर बाजार में एंट्री से जगी उम्मीद ।197७ में रिलायंस इंडस्ट्रीज ने पहली बार जनता से पैसे जुटाए, तब से चार प्रमुख घटनाओं ने बाजार का स्वरूप बदला है।

Aug 03, 2021 / 09:20 am

Patrika Desk

बाजार का नया अध्याय लिखने को तैयार ऑनलाइन बिजनेस कम्पनियां

जोमैटो की स्टॉक मार्केट में प्रभावी लिस्टिंग से अन्य इंटरनेट बिजनेस कम्पनियों के जनता से पूंजी जुटाने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। यह भारत के प्राथमिक बाजार में नए अध्याय की शुरुआत मानी जा रही है। जब एक कानून के तहत बहुराष्ट्रीय कम्पनियों पर जनता को हिस्सेदारी देने का दबाव बनाया गया और 197७ में रिलायंस इंडस्ट्रीज ने पहली बार जनता से पैसे जुटाए, तब से चार प्रमुख घटनाओं ने बाजार का स्वरूप बदला है। हर घटना ने कंपनियों-निवेशकों का विस्तार किया, या फिर नियम परिवर्तन के लिए संदर्भ बिंदु साबित हुईं।

रिलायंस का पदार्पण-
1977 में पहला प्रारंभिक सार्वजनिक निर्गम (आइपीओ) रिलायंस इंडस्ट्रीज का आया 2.82 करोड़ रुपए का। उत्साहित धीरूभाई ने पांच साल की अवधि में 1991 में भारत में उदारीकरण के दौर में चार बड़े पब्लिक इश्यू जारी किए। सभी को हाथोंहाथ लिया गया, पर ये बहुत शानदार रिटर्न नहीं दे सके। जल्द ही इनका आरआइएल में विलय हो गया, प्रमोटरों की शर्तों पर। लेकिन छोटे निवेशकों का भरोसा कायम रहा।

2026 तक जनता से पूंजी जुटाने में सक्रिय रही आरआइएल-
रिलायंस इंडस्ट्रीज – 1977
रिलायंस पेट्रोकेमिकल्स – 1988
रिलायंस पॉलिप्रोपाइलीन – 1992
रिलायंस पॉलिएथलीन – 1992
रिलायंस पेट्रोलियम – 1993
रिलायंस पेट्रोलियम – 2006

गहमागहमी वाला 90 का दशक –
उदारीकरण के दौर में आरआइएल के साथ ही प्राथमिक बाजार का दायरा बढ़ा। 1992 में पूंजी बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) का गठन किया गया। इसके चार माह बाद ही कैपिटल कंट्रोलर ऑफ इश्यूज (सीसीआइ) को भंग कर दिया गया। सरकारी इकाई सीसीआई कम्पनियों के इश्यू की कीमतें निर्धारण का कार्य करती थी। इसके भंग होने से अब कम्पनियां अपने इश्यू की कीमतें तय करने के लिए स्वतंत्र थीं। अब उन्हें सिर्फ सेबी से मंजूरी लेनी होती थी। सीसीआइ के समय 1991-92 में बाजार में 105 पब्लिक इश्यू लाए गए, जबकि इसके बाद पांच वर्ष के भीतर वार्षिक औसत निर्गम संख्या 942 हो गई। इनमें से कई कम्पनियां अब नदारद हैं।

सख्त हुआ नियामक, गुणवत्ता हुई बेहतर-
इन्फोसिस की ही तरह प्रत्येक कम्पनी की अलग कहानी है। जब भी बाजार में बूम आया तो निवेशकों की संख्या भी बढ़ी। जैसे-जैसे बाजार का विकास हुआ, वैसे-वैसे नए नियम भी बने, अक्सर इन नियमों के बनने का कारण धोखाधड़ी के मामले होते हैं। उदाहरण के लिए, 2005 में आइपीओ डीमैट घोटाला हुआ। पब्लिक इश्यू का आवंटन बढ़ाने के लिए हजारों फर्जी अकाउंट बनाए गए थे। 1990 की अति के बाद समीक्षा की गई। नियमों में बदलाव आइपीओ के हर पहलू को ध्यान में रख कर किए गए। कम्पनी का वित्तीय ट्रैक रिकॉर्ड, प्रमोटरों की स्वघोषणा, कम्पनी के शेयर परिसंचलन में हैं, यह सुनिििश्चत करने के लिए न्यूनतम शेयर होल्डिंग, संस्थागत निवेशकों के लिए आरक्षण ताकि वे भागीदारी कर सकें और विज्ञापन आचार संहिता शामिल की गई। फिलहाल पब्लिक इश्यू की संख्या 90 के दशक से कम है, परन्तु गुणवत्ता बेहतर है।

इंटरनेट बिजनेस पर निवेशकों का भरोसा-
जोमैटो जैसे इंटरनेट बिजनेस की अभी स्टॉक मार्केट में उपस्थिति बहुत कम है। इन कंपनियों में पूंजी अधिक लगती है और ये घाटे में रहती हैं। मई में सेबी ने इन्हें इनोवेटर ग्रोथ प्लेटफॉर्म पर सूचीबद्ध होने के लिए प्रोत्साहित किया। क्रेडिट सुइस की मार्च रिपोर्ट के मुताबिक बाजार पूंजीकरण के लिहाज से 336 भारतीय यूनिकॉर्न सूचीबद्ध हैं तो 100 गैर-सूचीबद्ध।

फिर आया आइटी कंपनियों की लिस्टिंग का दौर-
1993 में इन्फोसिस का निर्गम आया। भारतीय सॉफ्टवेयर कम्पनियां अमरीका में अपने ग्राहकों को इस बात पर सहमत करने में कामयाब हुईं कि वे भारत से उनको अपनी सेवाएं देंगी, वह भी कम कीमत पर। इसके बाद कई आइटी कम्पनियां बम्बई स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हुईं।
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