सबसे महत्त्वपूर्ण यह कि गरीबी कई बीमारियों की जड़ है, अपने देशवासियों को इससे बाहर निकाल कर हम आतंकियों के मंसूबों को नाकाम कर सकते हैं। गरीब और अशिक्षित लोगों के अतिरिक्त, कई बार पढ़े-लिखे लोग भी अक्सर छद्म रुहानी बातों पर यकीन करने लगते हैं और मरने के बाद बेहतरी की उम्मीद में जेहादियों के बहकावे में आ जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय आतंक का यह एक नया रूप है, जिसने दुनिया को चौंकाया है। जरूरत है ऐसे लोगों को जागरूक करने के लिए भी एक मुहिम शुरू की जाए। उम्मीद है सामाजिक- धार्मिक संगठन इसमें अपनी भूमिका निभाएंगे।
अमरीका और सहयोगी देशों की सैन्य कार्रवाइयों के कारण सीरिया-इराक और अफगानिस्तान में सक्रिय जेहादी सगठनों की कमर करीब-करीब टूट चुकी है। वहां वे मारे जा रहे हैं या कोई अन्य ठिकाने की तलाश में हैं। ऐसी कार्रवाइयों में केरल के कुछ गुमराह युवकों के मारे जाने की सूचना हमें चिंतित करती है। ऐसी खबरें भी सामने आती रही हैं कि आइएसआइएस भारत के लिए भी अपना मॉड्यूल स्थापित कर रहा है।
दुर्भाग्य से हमारा पड़ोसी पाकिस्तान शुरू से ही हमारे लिए परेशानी पैदा करनेवाला रहा है। सीधी लड़ाइयों में हारते रहने के बाद उसने अपनी रणनीति के तहत परोक्ष युद्ध का रास्ता अपनाया है। वहां की राजनीति अपने देश में धर्मांधता के बीज बो-कर ही लहलहाती रही है। जम्मू-कश्मीर पर मोदी सरकार के फैसले के बाद पाकिस्तान सरकार की प्रतिक्रिया अपने देश में मौजूद धर्मांध वोटबैंक को भुनाने वाली ही सामने आ रही है। आर्थिक तौर पर टूट चुके पाकिस्तान के लिए भारत से युद्ध का ख्वाब देखना भी महंगा पड़ सकता है, यह जानते हुए भी वहां कि सरकार व सेना जम्मू-कश्मीर के लिए लडऩे की बात कर रही है।
जाहिर है उनकी छिपी मंशा उसी परोक्ष लड़ाई की है जिसमें आतंकियों को समर्थन देकर हमेशा वे लड़ते रहे हैं। इसलिए भारत सरकार को भी पहले से ज्यादा सावधान हो जाने की जरूरत है। आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद की कथित धमकी के बाद सरकार ने सुरक्षा-व्यवस्था की मजबूती के लिए कुछ कदम उठाए हैं। इसी कड़ी में हवाई अड्डों पर अब पहले से ज्यादा जांच-पड़ताल की जाएगी। जाहिर है इससे सामान्य नागरिकों को भी कुछ परेशानी हो सकती है। बावजूद इसके, आतंकी घटनाओं को रोकने और अपने देशवासियों की सुरक्षा के लिए हरसंभव उपाय सरकार को करना ही होगा।