PATRIKA OPINION कब तक बचते रहेंगे लोगों की जिंदगी से खेलने वाले?
सवाल यह भी है कि एक बार दोषी पाए जाने पर भी आखिर क्यों पटाखा कारोबारी बेखौफ नजर आते हैं? इन तमाम सवालों का जवाब यही है कि कानून के नख-दंत तीखे नहीं किए गए। इतनी गलियां निकाल ली गई हैं कि लोगों की जान से खेलने वाले भी सजा पाने से बच जाते हैं। जिन पर निगरानी की जिम्मेदारी है उनके खिलाफ सख्त एक्शन नहीं लेना भी ऐसे हादसों के मुख्य कारणों में एक है।
PATRIKA OPINION कब तक बचते रहेंगे लोगों की जिंदगी से खेलने वाले?
घोर लापरवाही, नियमों की अनदेखी और जिम्मेदारों का आंखें मूंदना। जांच के आदेश और कभी पुनरावृत्ति नहीं होने देने का भरोसा देने की सरकारों की प्रवृत्ति। हर हादसे की ऐसी ही एक जैसी कहानी रहती आई है। मध्य प्रदेश के हरदा जिला मुख्यालय में बिना लाइसेंस चल रही पटाखा फैक्ट्री में घनी आबादी के बीच मौत का सामान तैयार हो रहा था लेकिन जिम्मेदारों ने शायद चांदी की खनक के आगे आंखों पर पट्टी ही बांध रखी थी।
हैरत इस बात की है कि रिहायशी इलाके में चल रही जिस पटाखा फैक्ट्री को असुरक्षित मानकर साल भर पहले प्रशासन से सील कर दिया था, उसी का लाइसेंस बाद में बहाल कर दिया गया। मिलीभगत के साथ जानलेवा अनदेखी का यह कोई पहला मामला नहीं है, जहां बेकसूर लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा हो और सैकड़ों को स्थायी अपंगता का दंश झेलने को मजबूर होना पड़ेगा। उन लोगों का दर्द भला कौन समझेगा जिन्होंने अपने प्रियजन को इस हादसे में हमेशा के लिए खो दिया। हरदा की इस पटाखा फैक्ट्री में हुए हादसे के बाद जांच करने गए अधिकारी भी तहखाने में रखी विस्फोटक सामग्री को देखकर अचंभित थे। जो जानकारी सामने आई है, उसके मुताबिक इसी फैक्ट्री में पिछले सात साल के दौरान ऐसे ही हादसों में कई मौतेें हो चुकी हैं। लापरवाही का आलम यह कि फैक्ट्री के संचालन में नियमों की लगातार अनदेखी होती रही, लेकिन जिम्मेदारों ने इस तरफ ध्यान देने की जरूरत ही नहीं समझी। पटाखा निर्माण और इनके संग्रहण के लिए फैक्ट्री-गोदाम बनाने के कानून-कायदे तय किए गए हैं। रिहायशी इलाकों में तो इन्हें किसी भी सूरत में संचालित नहीं किया जा सकता। नियमों की अनदेखी को लेकर जब-तब कोई आवाज उठाता है तो फौरी कार्रवाई होने लगती है और दान-दक्षिणा पहुंचने के बाद जिम्मेदार चुप्पी साध लेते हैं।
हरदा के इस हादसे के बाद भी हो सकता है कि देश भर में आबादी क्षेत्र में चल रहे ऐसे ‘मौत का सामान बनाने वाले’ कारखानों को नोटिस देने की खानापूर्ति हो जाए। लेकिन ऐसे हादसे फिर से न हों, ऐसी व्यवस्था आखिर क्यों नहीं हो पातीïï? आखिर क्यों साल-दर-साल पटाखा फैक्ट्रियों व गोदामों में विस्फोट की वजह से जानें चली जाती हैं। सवाल यह भी है कि एक बार दोषी पाए जाने पर भी आखिर क्यों पटाखा कारोबारी बेखौफ नजर आते हैं? इन तमाम सवालों का जवाब यही है कि कानून के नख-दंत तीखे नहीं किए गए। इतनी गलियां निकाल ली गई हैं कि लोगों की जान से खेलने वाले भी सजा पाने से बच जाते हैं। जिन पर निगरानी की जिम्मेदारी है उनके खिलाफ सख्त एक्शन नहीं लेना भी ऐसे हादसों के मुख्य कारणों में एक है।
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