कॉर्पोरेट कंपनियों में कर्मचारियों में काम का बहुत ज्यादा दबाव बनाया जाता है। बड़े शहरों में नौकरीपेशा लोगों के आफिस से आवास की दूरी इतनी अधिक होती है कि आने-जाने में ही काफी समय लग जाता है। पारिवारिक समस्याएं भी बनी रहती हैं। इससे व्यक्ति तनाव ग्रस्त होकर अवसाद में चला जाता है। इसलिए निजी कंपनियों की कार्य संस्कृति में सुधार की जरूरत है।
-प्रदीप कुमार छाजेड़, जोधपुर
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हर इंसान दूसरे से अलग होता है। व्यक्ति अपने हिसाब से वर्क लोड को मैनेज करता है। कुछ लोग इस तनाव को झेल नहीं पाते जिसका असर उनके शरीर पर पड़ता है।
-गोपाल अरोड़ा, जोधपुर
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कर्मचारियों का हर जगह शोषण हो रहा है। अधिक काम करने से मौतों का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। कामगारों का समय निर्धारित होना चाहिए। साथ ही उनको छुट्टियां भी दी जानी चाहिए।
अजीतसिंह सिसोदिया, बीकानेर
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काम के दबाव के चलते मौत के मामलों में कमी लाने के लिए प्राइवेट सेक्टर में काम के घंटे तय होना चाहिए। मानव शरीर से क्षमता से अधिक कार्य लेने पर जानलेवा बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। कंपनियों एवं सरकारी महकमों में स्टाफ की पर्याप्त भर्ती होना भी आवश्यक है। समय-समय पर नियमित स्वास्थ्य परीक्षण एवं उचित आहार विहार से भी आकस्मिक मृत्यु को टाला जा सकता है।
-ललित महालकरी, इंदौर
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काम का सही बंटवारा करने तथा कर्मियों को समुचित वेतन तथा जरूरी सुविधाएं आदि उपलब्ध करवाने जैसे दो छोटे-छोटे उपाय अपनाकर काम के दबाव के कारण होने वाली मौतों को रोका जा सकता है ।
- वसंत बापट, भोपाल, मप्र
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निजी सेक्टर में कंपनियां कर्मचारियों को क्षमता से ज्यादा टारगेट देती हैं और लक्ष्य को पूरा करने के लिए दबाव बनाती हैं। आर्थिक तंगी के कारण भी कर्मचारी ओवरटाइम करते हैं। सभी क्षेत्रों में काम करने की समय सीमा सुनिश्चित की जानी चाहिए।
-लता अग्रवाल चित्तौडग़ढ़