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कर्म ही प्रकृति की पहचान

Gulab Kothari Article Sharir Hi Brahmand: ‘शरीर ही ब्रह्माण्ड’ शृंखला में पढ़ें पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का यह विशेष लेख – कर्म ही प्रकृति की पहचान

Jun 25, 2023 / 08:27 am

Gulab Kothari

शरीर ही ब्रह्माण्ड : कर्म ही प्रकृति की पहचान

Gulab Kothari Article शरीर ही ब्रह्माण्ड: हमारे मन, बुद्धि और आत्मा की अभिव्यक्ति शरीर के माध्यम से ही होती है। शरीर के कर्म को श्रम कहते हैं, प्राणों के कर्म को चिन्तन व मनन को तप कहते हैं। बुद्धि के कर्म से शिल्प बनता है। मन कलाओं का आश्रय है। मन, जब कर्म से जुड़ता है तब सारा श्रम कला रूप में परिवर्तित हो जाता है। बिना मनोयोग के कला पैदा ही नहीं होती। मन की एकाग्रता कर्म को पूजा अथवा ध्यान का रूप प्रदान कर देती है। कला स्वयं ईश्वर का गुण है। आत्मा को षोडशकल कहा है। अत: कला आत्मा को मन और इन्द्रियों सहित ब्रह्म की ओर मोड़ती जान पड़ती है। कलाकार अपनी कला में सदा लीन ही दिखाई देता है। यही भक्ति का स्वरूप है। मूल में सिद्धान्त यही है कि कर्म ही बांधता है, कर्म ही बांधा जाता है और कर्म की ही कर्मान्तर से ग्रन्थि पड़ती है। कर्म और ग्रन्थि दोनों मरणशील हैं। जैसे वेगवान् वायु जल में (बुद्बुद रूप) पूरी तरह बांध दिया जाता है, फेन रूप भासित होता है, उसी तरह ब्रह्म में कर्म का बन्धन ही विश्व रूप है। बाहर कर्म है, भीतर ब्रह्म है।

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